मन के
कोरे पन्ने पर
लिखते-मिटते शब्द
समय के बदलाव के साथ
बदलते जाते हैं
बस अपनी ही कहते जाते हैं।
इन शब्दों से
खेलने की चाह
होते हुए भी
मैं
मौन ही रह जाता हूँ
कुछ कर नहीं पाता हूँ।
मेरे इस मौन में
सिर्फ इंतज़ार है
अपने अन्तिम पड़ाव का
जहाँ से
बदलाव का चरम
संग ले चलेगा
एक नयी दुनिया की
नयी यात्रा पर।
-यश ©
कोरे पन्ने पर
लिखते-मिटते शब्द
समय के बदलाव के साथ
बदलते जाते हैं
बस अपनी ही कहते जाते हैं।
इन शब्दों से
खेलने की चाह
होते हुए भी
मैं
मौन ही रह जाता हूँ
कुछ कर नहीं पाता हूँ।
मेरे इस मौन में
सिर्फ इंतज़ार है
अपने अन्तिम पड़ाव का
जहाँ से
बदलाव का चरम
संग ले चलेगा
एक नयी दुनिया की
नयी यात्रा पर।
-यश ©
सच है।
ReplyDeleteकोई पड़ाव अंतिम नहीं होता, न जाने कितने युग देखे हैं मानव ने इन्हीं आँखों से और कितने और देखने हैं..जीवन की इस अनमोल यात्रा में मोड़ ही आते हैं मंजिल नहीं..
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