मानता हूँ
कि मेरे शब्द
बहुत साधारण हैं
ये साहित्यिक नहीं
न ही इनमें दिखता है
काव्य का सौन्दर्य और
व्याकरण।
ये शब्द
सिर्फ आकार हैं
उन विचारों और
बातों के
जो मन में उमड़ती रहती हैं
कुछ-कुछ कहती रहती हैं
और मैं
घूम-फिर कर
अपनी सीमित शब्दावली को
उलट-पुलट कर
सिर्फ दोहराता ही रहता हूँ।
यह गद्य है या पद्य
मैं खुद नहीं जानता हूँ
स्वाभाविक है
प्रश्न चिह्नों का लगना
यह मानता हूँ।
-यशवन्त माथुर ©
27/04/2020
शब्द सीमित हैं, भावनाएं असीमित, भला वे कैसे चंद शब्दों में व्यक्त हो सकती हैं
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