बारूद की गंध से आसमान को
आज खूब महकाएंगे
डरे या सहमे चाहे कोई भी
पटाखे तो चलाएंगे।
ऐसी तैसी पर्यावरण की
धुंध की चादर बिछाएंगे
सांस न ले भले कोई भी
पटाखे तो चलाएंगे।
धूम धड़ाम हो गली मोहल्ला
हल्ला खूब मचाएंगे
रोगी कोई हो घर में लेटा
पटाखे तो चलाएंगे।
करें कोई भी काम ढंग का
तो प्रगतिशील कहलाएंगे
कुतर्की होने का सुख कैसे
फिर ऐसे ले पाएंगे?
जिसको जो कहना हो कह ले
पटाखे तो चलाएंगे।
सटीक।
ReplyDeleteअपना और औरों का नुकसान भी कर जायेंगे
ReplyDeleteपटाखे ....
सटीक व्यंग ...
ReplyDeleteसंवेदनहीन होता जा रहा है समाज...साँस लेना दूभर हो गया है फिर भी पटाखे तो चलाने ही हैं और प्रदूषण का ठीकरा सरकार के सर फोड़ना है
दीपोत्सव की अनंत शुभकामनाएं।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार (१६-११-२०२०) को 'शुभ हो दीप पर्व उमंगों के सपने बने रहें भ्रम में ही सही'(चर्चा अंक- ३८८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
जिसको जो कहना हो कह ले,
ReplyDeleteमोटी खाल हमारी ,क्योंकर मान जाएँगे!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकटाक्ष करती बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏