हर ग़म जाने को है कि मौत आने को है,
चुटकी भर खुशियाँ धूल में मिल जाने को हैं।
बेइंतिहा शिकायतों के वजूद पर मेरा सबर,
पछता रहा कि जो बीता वो कल आने को है।
धोखा इस बात का था कि उम्मीदें साहिल पर थीं,
मैं घिसटता ही रहा कि साँसें टूट जाने को हैं।
ठहर जा रे वक़्त! और बीत कर क्या होगा?
जो तू करने को था कर ही जाने को है।
24122020
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-12-2020) को "पन्थ अनोखा बतलाया" (चर्चा अंक- 3926) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत सार्थक और खूबसूरत अशआर।
ReplyDeleteदर्द में सराबोर हैं आपके ये अशआर यशवंत जी ।
ReplyDeleteजिंदगी की कशमकश को खूबसूरती से बयान करते अश्यार
ReplyDeleteसशक्त और सारगर्भित रचना..।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार और शुभकामनाएं।सादर।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुंदर व सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteक्या बात!
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
बहुत खूब ! शानदार रचना , हृदय स्पर्शी ।
ReplyDeleteबहुत ही गहराई तक छूने वाली सार्थक रचना हेतु साधुवाद 🙏🏻
ReplyDeleteधोखा इस बात का था कि उम्मीदें साहिल पर थीं,
ReplyDeleteमैं घिसटता ही रहा कि साँसें टूट जाने को हैं।
दिल को छूती अभिव्यक्ति।
मौत क्योंकर प्रिय हो ए प्रिय..
ReplyDeleteसांस क्यों थम जाने को है !!
वक्त की तासीर कुछ ठंडी गरम सही
ये भी वक्त बस गुजर जाने को है..
आपको समर्पित..