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24 December 2020

कि मौत आने को है....

हर ग़म जाने को है कि मौत आने को है,
चुटकी भर खुशियाँ धूल में मिल जाने को हैं।

बेइंतिहा शिकायतों के वजूद पर मेरा सबर,
पछता रहा कि जो बीता वो कल आने को है।

धोखा इस बात का था कि उम्मीदें साहिल पर थीं, 
मैं  घिसटता ही रहा  कि साँसें टूट जाने को हैं।  

ठहर जा रे वक़्त! और बीत कर क्या होगा?
जो तू करने को था कर ही जाने को है। 

-यशवन्त माथुर ©
24122020 

14 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-12-2020) को "पन्थ अनोखा बतलाया" (चर्चा अंक- 3926) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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  2. बहुत सार्थक और खूबसूरत अशआर।

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  3. दर्द में सराबोर हैं आपके ये अशआर यशवंत जी ।

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  4. जिंदगी की कशमकश को खूबसूरती से बयान करते अश्यार

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  5. सशक्त और सारगर्भित रचना..।

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. सुंदर और सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार और शुभकामनाएं।सादर।

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  8. सुंदर व सारगर्भित रचना।

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  9. क्या बात!
    बहुत सुंदर।

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  10. बहुत खूब ! शानदार रचना , हृदय स्पर्शी ।

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  11. बहुत ही गहराई तक छूने वाली सार्थक रचना हेतु साधुवाद 🙏🏻

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  12. धोखा इस बात का था कि उम्मीदें साहिल पर थीं,
    मैं घिसटता ही रहा कि साँसें टूट जाने को हैं।
    दिल को छूती अभिव्यक्ति।

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  13. मौत क्योंकर प्रिय हो ए प्रिय..
    सांस क्यों थम जाने को है !!
    वक्त की तासीर कुछ ठंडी गरम सही
    ये भी वक्त बस गुजर जाने को है..

    आपको समर्पित..

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