अपने स्वार्थ में
पर्दे के पीछे रह कर
दूसरों के काम बिगाड़कर
संतुष्ट हो जाने वाले...
और प्रत्यक्ष होकर
हितैषी जैसा दिखने वाले
दोस्त के नकाब में
दुश्मनी निभाने वाले
कुछ लोग
आस पास रह कर
जिसे समझते हैं
भेद
वह सिर्फ सुई होता है
जो अपनी चुभन से
एक दिन
बिखेर कर रख देता है
उनका सारा सच
और फिर
कुछ नहीं बचता
हर तरफ फैली हुई
कालिख के सिवा।
-यशवन्त माथुर ©
20122020
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बहुत उपयोगी और प्रेरक रचना।
ReplyDeleteदूसरों के काम बिगाड़कर
ReplyDeleteसंतुष्ट हो जाने वाले...
और प्रत्यक्ष होकर
हितैषी जैसा दिखने वाले
दोस्त के नकाब में
दुश्मनी निभाने वाले
सही कहा एकदम सटीक सुन्दर एवं सार्थक सृजन।
सटीक
ReplyDelete..... और फिर
ReplyDeleteकुछ नहीं बचता
हर तरफ फैली हुई
कालिख के सिवा।
यही होता है सचमुच यथार्थपरक कविता
साधुवाद🙏
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण किया है आपने ऐसे दोमुहे लोगों का। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।।।।।।
ReplyDeleteइन पंक्तियों को पढ़कर पता चलता है यशवंत जी कि आपने ज़िन्दगी को बह्त नज़दीक से देखा है । मैं आपके प्रत्येक शब्द से सहमत हूँ ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-12-20) को "शब्द" (चर्चा अंक- 3923) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत सही,ऐसे लोगों के साथ ऐसा होना भी चाहिए..सुन्दर सृजन..
ReplyDeleteयथार्थवादी लेखन
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन - - नमन सह।
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