कितने ही शब्द हैं यहाँ
कुछ शांत
कुछ बोझिल से
उतर कर चले आते हैं
मन के किसी कोने से
कहने को
कुछ अनकही
सिमट कर कहीं छुप चुकीं
वो सारी
राज की बातें
जिनकी परतें
गर उधड़ गईं
तो बाकी न रहेगी
कालिख के आधार पर टिकी
छद्म पहचान
बस इसीलिए चाहता हूँ
कि अंतर्मुखी शब्द
बने रहें
अपनी सीमा के भीतर
क्योंकि मैं
परिधि से बाहर निकल कर
टूटने नहीं देना चाहता
नाजुक नींव पर टिकी
अपने अहं की दीवार।
12012021
शब्दों की गहराई में जाकर रची सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमैं
ReplyDeleteपरिधि से बाहर निकल कर
टूटने नहीं देना चाहता
नाजुक नींव पर टिकी
अपने अहं की दीवार।
बहुत सटीक।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ... शब्दों की ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ! अभिनव स्वीकारोक्ति
ReplyDeleteपरिधि से बाहर निकल कर
ReplyDeleteटूटने नहीं देना चाहता
नाजुक नींव पर टिकी
अपने अहं की दीवार।
बहुत ख़ूब... बेहतरीन सृजन
बड़ी गहरी बात कह दी है यशवंत जी आपने । मगर सच । और सच के सिवा कुछ नहीं ।
ReplyDeleteकितने ही शब्द यहां..
ReplyDeleteबहुत सुंदर..रचना
बहुत सराहनीय कविता है
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