समय के साथ चलते-चलते
नयी मंजिल की तलाश में
भटकते-भटकते
कई दोराहों-चौराहों से गुजर कर
अक्सर मिल ही जाते हैं
हर देहरी पर
बिखरे-बिखरे से
उलझे-उलझे से
भीतर से सुलगते से
कुछ नये अल्फाज़
जिन्हें गर कभी
मयस्सर हुआ
कोई कोरा कागज़
तो कलम की जुबान से
सुना देते हैं
एक दास्तान
अपनी बर्बादियों के
उस बीते दौर की
जिससे बाहर निकलने में
बीत चुकी होती हैं
असहनीय तनाव
और अकेलेपन की
सैकड़ों सदियाँ।
31012021
कुछ नये अल्फाज़
ReplyDeleteजिन्हें गर कभी
मयस्सर हुआ
कोई कोरा कागज़
तो कलम की जुबान से
सुना देते हैं
एक दास्तान ....
सार्थक अभिव्यक्ति,
सार्थक कविता
सादर धन्यवाद🙏
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर🙏
Deleteपरंतु बाहर निकलना भी महत्वपूर्ण होता है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteलेकिन ख़ुशनसीब ही निकल पाते हैं अमृता जी । बाकी जिस पर गुज़रती है, वही जानता है । जब दर्द तब सबसे घना और इंसान को अपने में लपेट लेने वाला होता है, जब उसे बांटने वाला कोई न हो ।
Deleteमेरे दिल की बात कह दी है यशवंत जी आपने ।
Deleteसादर धन्यवाद अमृता जी एवं जितेंद्र जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सादर धन्यवाद🙏
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
Deleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteयदि मैं आपको यथार्थवादी कवि कहूँ तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी।
ReplyDeleteनिरंतर एक से बढ़।कर एक रचनाओं के संकलन में आप अग्रणी रहे ।सादर
सादर धन्यवाद सधु जी🙏
Deleteमैं खुद को कवि ही नहीं मानता। बस जो मन कहता है वो ही यहां लिख देता हूं।
एक दास्तान
ReplyDeleteअपनी बर्बादियों के
उस बीते दौर की
जिससे बाहर निकलने में
बीत चुकी होती हैं
असहनीय तनाव
और अकेलेपन की
सैकड़ों सदियाँ। ..हृदय स्पर्शी रचना..
सादर धन्यवाद🙏🏻
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद🙏🏻
Deleteबाहर निकल कर ही कोई सुना सकता है दर्द की दास्तान भी संभवत:...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद🙏🏻
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
सादर धन्यवाद।
Deleteअल्फ़ाज़ के माध्यम से गुमनाम हारे व्यक्तित्वों पर एक गहन दृष्टि ड़ालती सुंदर प्रतीकात्मक रचना।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
हृदय स्पर्शी।
हार्दिक धन्यवाद कुसुम जी।
Deleteअक्सर मिल ही जाते हैं
ReplyDeleteहर देहरी पर
बिखरे-बिखरे से
उलझे-उलझे से
भीतर से सुलगते से
कुछ नये अल्फाज़
लाजवाब....
बेहतरीन रचना यशवंत जी 🌹🙏🌹