जो जाना जाता था
किसान के हल से
अपने सुनहरे कल से
जिसके खेतों में फसलें
झूम-झूम कर
हवा से ताल मिलाती थीं
पत्ती-पत्ती फूलों से
दिल का हाल सुनाती थी
जहाँ संपन्नता तो नहीं
संतुष्टि की खुशहाली थी
महंगी विलासिता तो नहीं
पर ज़िंदगी गुजर ही जाती थी
कितना अच्छा था पहले
वैसा अब आज नहीं
पहले सुराज था
आज तो स्वराज नहीं
आज तो
बस पल-पल बिगड़ता
सबका वेश और परिवेश है
जो गणतंत्र था सच में कभी
क्या यह वही देश है?
24012021
यक्ष प्रश्न ... जिसका संभवतः कोई उत्तर नहीं है । गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसत्य है..यह वही देश नहीं..
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
प्रश्न तो सही है..इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए, सुन्दर कृति..
ReplyDeleteमेरे लेखों के ब्लॉग लिंक "गागर में सागर" पर आपके स्नेहपूर्ण भ्रमण का स्वागत है..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..जिज्ञासा सिंह..
सोचने को विवश करती बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDelete72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
विचारणीय प्रश्न ....
ReplyDeleteबहुत अच्छा विचारोत्तेजक लेख
देश तो वही है, अलबत्ता कुछ देशवासी जरूर पथभ्रष्ट हो गए हैं
ReplyDeleteapproval.ki bimaari, galti ho gyi aa kar
ReplyDeleteनहीं यशवन्त जी, यह वह देश नहीं है । वह देश अब केवल पुरातन स्मृतियों में रह गया है । इस समयकाल में तो आप ही की बात सत्य है कि पल-पल बिगड़ता सबका वेश व परिवेश है ।
ReplyDeleteहृदय को बिंधता प्रश्न पर सटीक ।
ReplyDeleteसब कुछ तो बदल गया है ,न वो नेता न व जनता न वो जनतंत्र,न वो जज्बा कुछ इतिहास के पृष्ठों पर अंकित वो उच्च आदर्शों वाला देश।
अप्रतिम सृजन।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteयक्ष प्रश्न
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों में उतनी ही सहजता से आपने व्यक्त की हम सब के मन की व्यथा.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.
गणतंत्र दिवस पर तथाकथित किसानों की बेहूदा हरकतें अब सोचने को विवश करती हैं उन्हें भी जिन्हें इनसे बेहद सहानुभूति थी...।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक विचारणीय सृजन।
बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन वाह ! बहुत सुंदर कहानी,
ReplyDeletePoem On Mother In Hindi