आज फिर मन मचल रहा है
मय का प्याला पीने को
दबी छुपी कुछ बातें मन की
मधुशाला में कहने को
दुनिया में कोई नहीं है
मेरी थोड़ी सुनने वालाअपनी कुछ न कहती मुझ से
सुनती मुझ को मधुशाला.
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
बहुत ही अच्छा आग़ाज़...और बहुत सुंदर
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
मधुशाला तक तो ठीक है पर ये मधु ठीक नहीं
ReplyDeleteआदरणीया वीना जी,भास्कर जी और प्रिय माधव बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ...शुभकामनायें ।
ReplyDeleteआदरणीया दिव्या जी ,बहुत बहुत धन्यवाद.
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