और आज
आखिर तुम चली ही गयी
उस ओर
जहाँ से वापस आना
शायद मुमकिन नहीं
तुम गिन रही थी
साँसों को
बरसों से
तड़प रही थी तुम
आज़ाद हो जाने को
मुक्ति पाने को
और आज
तुम हो गयी हो मुक्त
भौतिक रूप में
औपचारिक रूप में
किन्तु न हो सकोगी मुक्त
मेरी धुंधली सी यादों से
न भूल सकुंगा
तुम्हारे उन अहसासों को
न भूल सकुंगा
तुम्हारे उस साथ को
जो क्षणिक ही सही
पर मुझ को भी मिला था
ये तो होना ही था
हुआ भी
आज तुम गयी
और कल
शायद मेरी बारी हो.
आखिर तुम चली ही गयी
उस ओर
जहाँ से वापस आना
शायद मुमकिन नहीं
तुम गिन रही थी
साँसों को
बरसों से
तड़प रही थी तुम
आज़ाद हो जाने को
मुक्ति पाने को
और आज
तुम हो गयी हो मुक्त
भौतिक रूप में
औपचारिक रूप में
किन्तु न हो सकोगी मुक्त
मेरी धुंधली सी यादों से
न भूल सकुंगा
तुम्हारे उन अहसासों को
न भूल सकुंगा
तुम्हारे उस साथ को
जो क्षणिक ही सही
पर मुझ को भी मिला था
ये तो होना ही था
हुआ भी
आज तुम गयी
और कल
शायद मेरी बारी हो.
एक भौतिक वस्तु से इतना लगाव तारीफ के काबिल नहीं लेकिन अपनी देह की तुलना इस से की जा सकती है क्योकि हम सभी पाँच भौतिक प्रदार्थों से ही तो मिलकर बने हैं .कविता रूप में भावनाओं की यह अभिव्यक्ति अत्यंत सराहनीय है .बधाई .
ReplyDeleteचवन्नी के संदर्भ में अठन्नी की जुबानी उसका दर्द पढ़ें को मिला.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteचवन्नी से आपका लगाव देखकर बहुत अच्छा लगा .....हर आने वाले को एक-न-एक दिन तो जाना ही होता है
ReplyDeletekhubsurat aur sarthak abhivakti....
ReplyDeleteये तो होना ही था
ReplyDeleteहुआ भी
आज तुम गयी
और कल
शायद मेरी बारी हो.
हाँ यही तो होना है....... एक न एक दिन तो सबको जाना है...कल तो अपनी भी बारी है... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....
लखनऊव्वा भाषा में अब हर कोई "चवन्नी कम" हो गया ।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
अलग सा बिम्ब, सुंदर रचना
ReplyDeleteकल मेरी बारी है ... यह पंक्तियाँ .. अट्ठनी की भी हो सकती हैं और इंसान की भी ..जाना तो सबको ही है :)
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
yeh to hoga hi jaise purane kapde ko badhal diya jata hai usi yeh bhi huaa hai sikka to kuchh samay baad 1rs bhi band ho jayega kyoki itni magai ho rahi hai ki 1rs ka ab kuchh nahi milta hai so vo band hona hi hai
ReplyDeletecome my blog link
chhotawriters.blogspot.com
पूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया फ़क्त |
ReplyDeleteहुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||
कम से कम अब पांच ठौ, रूपया पावैं पण्डे |
पड़ा चवन्नी छाप का, नया नाम बरबंडे ||
बहुतै खुश होते भये, सभी नए भगवान् |
चार गुना तुरतै हुआ, आम जनों का दान ||
मठ-मजार के नगर में, भर-भर बोरा-खोर |
भ'टक साल में भेजते, सिक्के सभी बटोर || |
भ'टक-साल सिक्का गलत, मिटता वो इतिहास |
जो काका के स्नेह सा, रहा कलेजे पास ||
अन्ना के विस्तार को, रोकी ये सरकार |
चार-अन्ने को लुप्त कर, जड़ी भितरिहा मार ||
बड़े नोट सब बंद हों, कालेधन के मूल |
मठाधीश होते खफा, तुरत गयो दम-फूल ||
महाप्रभु के कोष में, बस हजार के नोट |
सोना चांदी-सिल्लियाँ, रखें नोट कस छोट ||
बिधि-बिधाता जान लो, होइहै कष्ट अपार |
ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, गर झूली सरकार ||
बहुत-बहुत बधाई |
ReplyDeleteचवन्नी के जाने का दर्द वो क्या जाने बाबू--
जिन्हें हजार के नोटों से ही मतलब ||
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना | सचमुच चवन्नी का जाना पता नहीं क्यों आज भावमय कर जा रहा है | इसी विषय वष्टु पर मेरी कविता जरुर पढ़ें |
ReplyDeleteधन्यवाद् |
http://pradip13m.blogspot.com/2011/06/blog-post_30.html
चवन्नी को समर्पित लाजवाब कविता...
ReplyDeleteहर कोई चला ही जाता है यही तो नियति है
ReplyDeleteवाह, इसे कहते हैं बिल्कुल सोलह आने कवि का दिल जो एक चवन्नी से भी गुफ्तगू कर बैठता है..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteमित्रों अब सवा रुपये के प्रसाद का क्या होगा। आमतौर पर मनौती सवा रूपये के प्रसाद की ही मानी जाती थी।
गहरे जज्बात। आभार।
ReplyDeleteWah kya bat kahi hai sir ji....
ReplyDeleteap bhi aaeye.... hamara bhi hausla badhaiye
जाती नहीं तो क्या करती, इसे पूछता भी कौन था भाई? अब नंबर है अठन्नी और फिर रूपल्ली का|
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteकिन्तु न हो सकोगी मुक्त
ReplyDeleteमेरी धुंधली सी यादों से ....बहुत सुन्दर
बहुत बढ़िया लिखा है आपने..बचपन की मस्ती जुड़ी है इस सिक्के से.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteयादों में संजोयी गए तथ्य बीतते नहीं हैं!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!