ओ बादलों !
यहाँ की हरियाली को
उजाड़ कर
कंक्रीट की बस्ती में
अब मुझे इंतज़ार है
तुम्हारे बरसने का
हाँ
मैंने छीना है
तुम्हारा आकर्षण
और
जो है भी
वो इतनी ऊंचाई पर
तुम देख नहीं सकते
क्योंकि
गमलों मे लगे बोन्साई
तुम से
कुछ कह नहीं सकते
ओ बादलों !
चोरी और सीना जोरी
मेरी स्वाभाविक फितरत है
यह तुम भी समझते हो
फिर भी
क्यों नहीं बरसते हो
चलो
अब ज़्यादा
नखरे मत दिखाओ
जल्दी से आओ
बरस भी जाओ
शायद
तुम्हारे बरसने से
झुलसती धरती के
ज़ख़्मों को
कुछ राहत मिले
और नयी कोंपल देख कर
मैं लूँ सबक
उसे सहेजने का।
©यशवन्त माथुर©
'मैं' और 'मेरी' शब्द -मानव जाति के लिये प्रयोग किए हैं
यहाँ की हरियाली को
उजाड़ कर
कंक्रीट की बस्ती में
अब मुझे इंतज़ार है
तुम्हारे बरसने का
हाँ
मैंने छीना है
तुम्हारा आकर्षण
और
जो है भी
वो इतनी ऊंचाई पर
तुम देख नहीं सकते
क्योंकि
गमलों मे लगे बोन्साई
तुम से
कुछ कह नहीं सकते
ओ बादलों !
चोरी और सीना जोरी
मेरी स्वाभाविक फितरत है
यह तुम भी समझते हो
फिर भी
क्यों नहीं बरसते हो
चलो
अब ज़्यादा
नखरे मत दिखाओ
जल्दी से आओ
बरस भी जाओ
शायद
तुम्हारे बरसने से
झुलसती धरती के
ज़ख़्मों को
कुछ राहत मिले
और नयी कोंपल देख कर
मैं लूँ सबक
उसे सहेजने का।
©यशवन्त माथुर©
'मैं' और 'मेरी' शब्द -मानव जाति के लिये प्रयोग किए हैं
Hum bhi nahi jante...humne jane anjane prakrati ko kitna nuksan pohchaya he....
ReplyDeleteइन्ही बादलों का इंतज़ार हैं
ReplyDeleteअब तो इन्हें जरुर बरसना होगा... शुभकामनायें
ReplyDeleteअब तो बरस ही जाओ..धरती प्यासी तुम्हें ताकती
ReplyDeleteवाह: बहुत सुन्दर रचना..जी..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और भाव पूर्ण रचना |
ReplyDeleteशायद
ReplyDeleteतुम्हारे बरसने से
झुलसती धरती के
ज़ख़्मों को
कुछ राहत मिले
और नयी कोंपल देख कर
मैं लूँ सबक
उसे सहेजने का।
बहुत सुंदर .... अब सहेजना न समझे तो परिणाम बड़े घातक ही होंगें
काश अब भी कुछ सबक सीख सकें .... बहुत सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteऔर नयी कोंपल देख कर
ReplyDeleteमैं लूँ सबक
उसे सहेजने का।
अब नहीं चेते तो परिणाम बड़े खतरनाक होंगें .... !!
सार्थक रचना की सुन्दर अभिव्यक्ति .... :))
नयी कोंपल देख कर
ReplyDeleteमैं लूँ सबक
उसे सहेजने का।
सहेजना आवश्यक है...अगली पीढ़ी के लिए !!!
really... we the culprit ... todestroy greenness... that attracts rain... we turned this green land into concrete... pillars... now for why ... rain will come... a unique post /
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteयक़ीनन , तुम्हारे बरसने से
ReplyDeleteझुलसती धरती के
ज़ख़्मों को
कुछ राहत मिलेगी,बहुत सुन्दर...
सार्थक सुन्दर रचना ... बधाई
ReplyDeleteबदरी छा गई है
बारिश आ गई है
बहुत सुन्दर यशवंत...
ReplyDeleteसस्नेह.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह ... बहुत बढिया
ReplyDeleteकल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
बहुत मुश्किल सा दौर है ये
सूखी ज़मीन पर फिर से हरियाली आएगी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...इसीलिए मानसून आ गया !!
ReplyDeletewaah ...sundar shikayat ...ab aap rooth gaye hain ...baadal manaa hii lenge ....!!
ReplyDeletesundar rachna .
shubhakaamanaayen.
कंक्रीट की बस्ती में
ReplyDeleteअब मुझे इंतज़ार है
तुम्हारे बरसने का
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण ....
bahut sundar rachna.
ReplyDeleteओ बादलों !
ReplyDeleteयहाँ की हरियाली को
उजाड़ कर
कंक्रीट की बस्ती में
अब मुझे इंतज़ार है
तुम्हारे बरसने का - bahut sundar
बरस जा ए बदल बरस जा....
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
:-)
इंसान बहुत खुदगर्ज़ जीव है इतनी आसानी से सबक लेने वाला नहीं...
ReplyDeleteऔर नयी कोंपल देख कर
ReplyDeleteमैं लूँ सबक
उसे सहेजने का।
..ATI SUNDAR....