घर बार से
कहीं दूर
किसी रेगिस्तान की
रेतीली ज़मीन पर
या
बर्फ भरी
पर्वतों की
ऊंची चोटियों पर
ठौर जमाए
पीठ पर
भारी बोझ
हाथ में हथियार
और निगाहों में
पैनापन लिए
वह
जूझता है
मौसम की मार
और
दुश्मन के वार से
लेकिन
हिलता नहीं
शहादत के
अटल
दृढ़ संकल्प से .....
उसका समर्पण
उसका तन
उसका मन
मातृ भूमि की
सरगम में
डूबता उतराता हुआ
बहता चलता है
घर बार से
कहीं दूर
किसी
सीमा रेखा के भीतर
हजारों हजार
दुआओं
और सलामों को
साथ लिए
जिसे गर्व होता है
खुद पर
वह
सैनिक है।
~यशवन्त यश©
कहीं दूर
किसी रेगिस्तान की
रेतीली ज़मीन पर
या
बर्फ भरी
पर्वतों की
ऊंची चोटियों पर
ठौर जमाए
पीठ पर
भारी बोझ
हाथ में हथियार
और निगाहों में
पैनापन लिए
वह
जूझता है
मौसम की मार
और
दुश्मन के वार से
लेकिन
हिलता नहीं
शहादत के
अटल
दृढ़ संकल्प से .....
उसका समर्पण
उसका तन
उसका मन
मातृ भूमि की
सरगम में
डूबता उतराता हुआ
बहता चलता है
घर बार से
कहीं दूर
किसी
सीमा रेखा के भीतर
हजारों हजार
दुआओं
और सलामों को
साथ लिए
जिसे गर्व होता है
खुद पर
वह
सैनिक है।
~यशवन्त यश©
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद सार्थक और प्रेरक रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं सार्थक.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति......
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ReplyDeleteजो देश के लिये जीते हैं---
वही कुर्बान भी होते हैं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteसैनिक की सुंदर परिभाषा..
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