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13 December 2018

अरे अब तो बुझ जाऊँ मैं......

इससे पहले कि शमा बुझे
खुद ही बुझ जाऊँ मैं।
मन की सुनसान राहों पर
उड़ूँ और बिखर जाऊँ मैं।

अब तक तो ये न सोचा था
क्या फलसफे होंगे कल के।
बस आज में जीते हुए ही
बुनता सपने अपने मन के।

इससे पहले कि उलझन सुलझे
खुद को ही सुलझाऊँ मैं।
आखिर कब तक जलता रहूँगा
अरे अब तो बुझ जाऊँ मैं।

-यश©
12/दिसंबर/2018 

3 comments:

  1. होता है पर समय जलना बुझना तय करता है।

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  2. भावपूर्ण..स्वयं को सुलझाना ही सर्वोत्तम है

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  3. अब तो प्रकाश ही बन गए हो बुझते और सुलगते..
    अब बुझ ना सकोगे..प्रकाशमान हो गए बिखरते बिखरते..

    सादर

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