वो भी इंसान होते हैं।
अपने ठेले पर हमारी जरूरत का
हर सामान ढोते हैं।
चलते हैं पैदल और पार करते हैं
हर लंबा रास्ता।
कुछ ले लो बाबू जी! गुजर करना है
खुदा का वास्ता ।
जूझ कर गालियों से गलियों में
हफ्ता चुकाते हुए।
समय उनको भी काटना है
खर्चा चलाते हुए।
पाँच-दस रुपये कम में कौन से
काम आसान होते हैं ?
मोल भाव न करो फेरी वालों से
वो भी इंसान होते हैं।
-यशवन्त माथुर ©
09/05/2020
वर्तमान समय में सार्थक, भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी रचना भी पढ़ें
काफी समय बाद लिखा..
http://merisyahikerang.blogspot.com/2020/05/blog-post.html?m=1
संवेदना जगातीं पंक्तियाँ
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