प्रश्न भी बहुत हैं
उत्तर भी बहुत हैं
फिर भी
उलझनों की राह पर
वक़्त चलता जा रहा है
जाने क्या होता जा रहा है?
सोचा तो नहीं था
कि ऐसा भी होगा
जिन्हें अपना समझता रहा
उनकी नज़रों में
धोखा ही होगा।
कल्पना के हर उजाले में
अब अंधेरे बहुत हैं
कोरे स्याह इन पन्नों को
कुरेदने वाले बहुत हैं।
-यशवन्त माथुर ©
27082020
उत्तर भी बहुत हैं
फिर भी
उलझनों की राह पर
वक़्त चलता जा रहा है
जाने क्या होता जा रहा है?
सोचा तो नहीं था
कि ऐसा भी होगा
जिन्हें अपना समझता रहा
उनकी नज़रों में
धोखा ही होगा।
कल्पना के हर उजाले में
अब अंधेरे बहुत हैं
कोरे स्याह इन पन्नों को
कुरेदने वाले बहुत हैं।
-यशवन्त माथुर ©
27082020
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसोचा तो नहीं था
ReplyDeleteकि ऐसा भी होगा
जिन्हें अपना समझता रहा
उनकी नज़रों में
धोखा ही होगा।
ऐसे कहाँ सोचते हैं जब धोखा होता है तब मुँह की खाते हैं
बहि सुन्दर सृजन।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
फिर भी आशा का दामन थाम कर रखना है, कोई करे न करे अपने आप पर व उस रब पर भरोसा रखना है
ReplyDeleteसार्थक और सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत हैं..
ReplyDeleteबहुत बहुत सवारने वाले..
बहुत बहुत मुकरने वाले..
वक्त वक्त के साथी भी
वक्त वक्त बदलने वाले..
आपको समर्पित