जो सक्षम हो कर भी
असमर्थ हों
उन तथाकथित
अपनों से दूर होने की
गर आ जाए सामर्थ्य
तो धन्य हो कर
कूच कर जाऊँ
एक नयी दुनिया की ओर।
-यशवन्त माथुर ©
22082020
असमर्थ हों
उन तथाकथित
अपनों से दूर होने की
गर आ जाए सामर्थ्य
तो धन्य हो कर
कूच कर जाऊँ
एक नयी दुनिया की ओर।
-यशवन्त माथुर ©
22082020
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-08-2020) को "आदिदेव के नाम से, करना सब शुभ-कार्य" (चर्चा अंक-3802) पर भी होगी।
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श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteक्या बात...।
वर्तमान परिवेश का यथार्थ जो हर हृदय में खनकता है अपने शब्द दिए। सराहना से परे।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
हमारे लिए जो तथाकथित हैं हम क्या हैं उनके लिए... दूरी तो अब भी बनी ही हुई है निकटता तो कभी थी ही नहीं, मन जो लगता है निकट आत्मा के आसमान से भी दूर नहीं है
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