अनवरत चलने के क्रम में
अक्सर
मील के पत्थर आते जाते हैं
हम गुजरते जाते हैं
समय के साथ
कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं
कभी शून्य से शिखर पर
कभी शिखर से शून्य पर
कई चढ़ाईयों- ढलानों
कँटीले रास्तों, नदियों-तालाबों
और पहाड़ों के साथ
रफ्तार को थामते हुए
थोड़ा रुकते हुए
देखते हुए
हर मौसम के रंग
प्रकृति के संग
जुड़ जाती हैं
अनायास ही
कुछ ऐसी उपलब्धियाँ भी
जिनका प्रतिफल
कुछ न होते हुए भी
आत्मसंतुष्टि तो
होता ही है।
11032021
यह पोस्ट/ ये पंक्तियाँ मेरे जीवन में एक उपलब्धि ही है, क्योंकि इसी के साथ मैंने 1000 मौलिक अभिव्यक्तियों (हालांकि समय-समय पर लिखे कुछेक लेखों को इसमें नहीं जोड़ा है) की संख्या प्राप्त कर ली है। मैं अपने लिखे को 'कविता' की श्रेणी में नहीं रखता, इसलिए इसे 'पंक्तियाँ' ही कहना ज्यादा सही समझता हूँ। अपने पिताजी के प्रोत्साहन से 7 वर्ष की आयु से शुरू होकर, कछुआ चाल से चलते हुए इस संख्या तक पहुँचने में मुझे 30 वर्ष से कुछ अधिक समय लगा।
बहरहाल लिखने का क्रम अभी जारी रहेगा।
-यशवन्त
पूर्णतः सहमत हूँ यशवंत जी मैं आपकी इस अभिव्यक्ति से ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteसचमुच 1000 अभिव्यक्ति उपलब्धि है वैचारिकी समृद्धि को लिपिबद्ध करने की।
ReplyDeleteलेखन की यात्रा अनवरत जारी रहे अनेक उपलब्धियाँ और जुड़ते रहे मेरी भी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
सादर।
सादर धन्यवाद!
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDelete--
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर धन्यवाद सर!
Deleteअनायास ही
ReplyDeleteकुछ ऐसी उपलब्धियाँ भी
जिनका प्रतिफल
कुछ न होते हुए भी
आत्मसंतुष्टि तो
होता ही है।
..आत्मसंतुष्टि तो सबसे बड़ी उपलब्धि है,हालांकि सबका अपना अपना नजरिया होता है..
सादर धन्यवाद सर!
Deleteजी सही बात कही आपने
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteप्रभावशाली लेखन - - शुभ कामनाओं सह।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteशून्य से शिखर पर या शिखर से शून्य पर आना जब एक जैसा लगे तभी भीतर संतोष का अंकुर उगता है, तब यात्रा अनायास ही जारी रहती है, सार्थक लेखन !
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