समय के साथ-साथ
सब चेहरे
धुंधले होने लगते हैं
लिखे हुए शब्द
मिटने से लगते हैं
सदियों से सहेजे हुए कागज़
गलने लगते हैं
लेकिन
उन पर रचा हुआ इतिहास
श्रुति बन कर
गूँजता रहता है
वक़्त के कत्लखाने में।
19032021
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
इतिहास में तो न जाने क्या क्या क़त्ल हो जाता है ...विचारणीय .
ReplyDeleteजी हाँ यशवंत जी ।
ReplyDeleteवही इतिहास कालांतर में पुराण बनकर जीवित रहता है मनों में
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteइतिहास श्रुति बनकर गूँजता रहता है...
ReplyDeleteवक्त के कत्लखाने में...
सटीक एवं सार्थक सृजन।