वर्तमान महामारी को लेकर इस समय दो धारणाएँ बनी हुई हैं। एक धारणा इसे वास्तविक महामारी मानती है, वहीं दूसरी धारणा इसे सिर्फ एक राजनीतिक अवसरवादिता के रूप में देखती है। बहरहाल अभी हाल ही में फ़ाइज़र ने कुछ देशों के सामने वैक्सीन की आपूर्ति हेतु कुछ अजब-गजब शर्तें रखी हैं, जिनके बारे में गिरीश मालवीय जी ने आज एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखी है, जिसे साभार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है-
दुनिया की सबसे बड़ी ओर मशहूर फार्मा कम्पनी फाइजर ने अपनी कोरोना वेक्सीन को ब्राजील अर्जेंटीना जैसे लैटिन अमेरिकी देशो को देने के लिए जो शर्तें लगाई हैं उसी से समझ आता है कि कोरोना के पीछे कितने खतरनाक खेल चल रहे हैं।
लोग चिढ़ते हैं जब कोरोना को मैं एक राजनीतिक महामारी कहता हूं। दअरसल सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारा नेशनल ओर इंटरनेशनल मीडिया पूरी तरह से कोरोना के पीछे से रचे जा रहे अंतराष्ट्रीय षणयंत्र का हिस्सा बन चुका है, वह इन बड़ी फार्मा कम्पनियों के साथ मिला हुआ है, अगर कही भी गलती से भी उनके खिलाफ कोई खबर आ जाए तो वह पूरी कोशिश करता है उस खबर को दबाने की।
यह पोस्ट जिस लेख का सहारा लेकर लिखी गयी है वह 23 फरवरी को 'द ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म' द्वारा प्रकाशित किया गया था, आश्चर्य की बात है बेहद प्रतिष्ठित ग्रुप द्वारा प्रकाशित की गयी इस खबर को दबा दिया गया।
निष्पक्ष खबरें प्रकाशित करने का डंका बजाने वाले बीबीसी ओर NDTV जैसे मीडिया समूह ने भी अगले 9 दिनों तक इस पर कोई बात करना उचित नही समझा। मजे की बात यह है कि जी न्यूज जैसी संस्था ने यह खबर कल फ्लैश की है वो भी मोदी जी की बड़ाई करते हुए।
इस लेख में बताया गया है कि फाइजर ने कोरोना वेक्सीन को सप्लाई करने के लिए जो बातचीत शुरू की है उसमें फाइजर ने लैटिन अमेरिकी देशों को वेक्सीन के लिए ब्लैकमेल करते हुए अपने कानून तक बदलने पर मजबूर कर दिया. उन्हें "धमकाया" तक गया है।
वेक्सीन सप्लाई के बदले कुछ देशों को संप्रभु संपत्ति,जैसे- दूतावास की इमारतों और सैन्य ठिकानों को किसी भी कानूनी कानूनी मामलों की लागत के खिलाफ गारंटी के रूप में रखने के लिए कहा है।
फाइजर कंपनी ने अर्जेंटीना की सरकार से कहा कि अगर उसे कोरोना की वैक्सीन चाहिए तो वो एक तो ऐसा इंश्योरेंस यानी बीमा खरीदे जो वैक्सीन लगाने पर किसी व्यक्ति को हुए नुकसान की स्थिति में कंपनी को बचाए. यानी अगर वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट होता है, तो मरीज को पैसा कंपनी नहीं देगी, बल्कि बीमा कंपनी देगी। जब सरकार ने कंपनी की बात मान ली, तो फाइजर ने वैक्सीन के लिए नई शर्त रख दी और कहा कि इंटरनेशनल बैंक में कंपनी के नाम से पैसा रिजर्व करे। देश की राजधानी में एक मिलिट्री बेस बनाए जिसमें दवा सुरक्षित रखी जाए। एक दूतावास बनाया जाए जिसमें कंपनी के कर्मचारी रहें ताकि उनपर देश के कानून लागू न हों।
ब्राजील को कहा गया कि वह अपनी सरकारी संपत्तियां फाइजर कंपनी के पास गारंटी की तरह रखे,ताकि भविष्य में अगर वैक्सीन को लेकर कोई कानूनी विवाद हो तो कंपनी इन संपत्तियों को बेच कर उसके लिए पैसा इकट्ठा कर सके। ब्राजील ने इन शर्तों को मानने से मना कर दिया है।
फाइजर 100 से अधिक देशों के साथ वैक्सीन की डील कर रहा है। वह लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में नौ देशों के साथ समझौते की आपूर्ति कर रहा है: चिली, कोलंबिया, कोस्टारिका, डोमिनिकन गणराज्य, इक्वाडोर, मैक्सिको, पनामा, पेरू, और उरुग्वे। उन सौदों की शर्तें अज्ञात हैं।
'द ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म' से जुड़े पत्रकारों ने इस संदर्भ में दो देशों के अधिकारियों से बात की, जिन्होंने बताया कि कैसे फाइजर के साथ बैठकें आशाजनक रूप से शुरू हुईं, लेकिन जल्द ही दुःस्वप्न में बदल गईं।
इन देशों को अंतराष्ट्रीय बीमा लेने पर भी मजबूर किया गया 2009 -10 के एच1एन1 के प्रकोप के दौरान भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया था बाद में पता लगा था कि एच1 एन1 एक फर्जी महामारी थी।
जिसे इस पोस्ट पर संदेह हो वो लिंक में 'द ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म' की साइट पर प्रकाशित लेख पढ़ सकता है। लिंक निम्नवत हैं-
बेहद अफसोसजनक है यह घटनाक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन को आगे आना चाहिए
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteविचारणीय लेख।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
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