(श्रीमती पूनम माथुर ) |
परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो समय के साथ साथ होता रहता है। यह परिवर्तन सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी।इंसान के बदलते व्यवहार पर पूर्वाञ्चल और बिहार की लोकप्रिय बोली भोजपुरी मे मेरी मम्मी द्वारा लिखा गया तथा क्रान्ति स्वर पर पूर्व प्रकाशित यह आलेख साभार यहाँ पुनः प्रस्तुत है--
------------------------------------------------------------हमार भईय्या जब रेल से घरे आवत रहलन तब ट्रेन में उनकर साथी लोगन कहलन कि हमनी के त बहुत तरक्की कर ले ले बानी सन.आज हमनी के देश त आजादी के बाद बहुत प्रगतिशील हो गइल बा.पहिले के जमाना में त घोडा गाडी ,बैल गाडी में लोग सफर करत रहलन लेकिन अब त पूरा महीना दिन में समूचा देश विदेश घूम के लोग घरे लौटी आवेला .आजकल त This,That,Hi,Hello के जमाना बा. कोई पूछे ला कि how are you ?त जवाब मिले ला fine sir /madam कह दिहल जाला .कपड़ा ,लत्ता ,घर द्वार गाडी-घोडा फैशन हर जगह लोगन में त हमही हम सवार बा. आज त तरक्की के भर-मार बा.पर अपना पन से दूर-दराज बा.कोई कहे ला हमार फलनवा नेता बाडन त कोई कहे ला अधिकारी बाडन कोई प्राब्लम बा त हमरा से कहअ तुरन्ते सालव हो जाईल तनी चाय पानी के खर्चा लागी.बाकी त हमार फलनवा बडले बाडन निश्चिन्त रहअ .खुश रहअ ,मस्त रहअ मंत्री,नेता अधिकारी बस जौन कहअ सब हमरे हाथे में बाडन .बात के सिलसिला अउर आगे बढित तब तक स्टेशन आ गईल .सब के गंतव्य आ गईल .अब के बतीआवेला सबे भागम्भागी में घरे जाय के तैयारी करत रहे अब बिहान मिलब सन .भाईबा त बात आगे बढ़ी आउर बतिआवल जाई सब कोई आपन आपन रास्ता नाप ले ले.रात हो गईल रहे सवारी मिले में दिक्कत रहे हमार भइया धीरे धीरे पैदल घरे के ओरे बढ़त रहलन त देखलन कि आर ब्लाक पर एगो गठरी-मोटरी बुझाई.औरु आगे बढ़लन त देखलन कि एगो आदमी गारबेज के पास बईठलबा थोडा औरु आगे उत्सुकता वश बढले त देखले कि ऊ आदमी त कूड़ा में से खाना बीन के खाता बेचारा भूख के मारल .अब त हमार भयीआ के आंखि में से लोर चुए लागल भारी मन से धीरे धीरे घरे पहुचलन दरवाजा हमार भौजी खोलली घर में चुपचाप बइठ गइला थोड़े देरे के बाद हाथ मुंह धो कर के कहलन की" आज खाना खाने का जी नही कर रहा है. आफिस में नास्ता ज्यादा हो गया है ,तुम खाना खा लो कल वही नास्ता कर लेंगे.भाभी ने पूछा बासी ,हाँ तो क्या हुआ कितनों को तो ऐसा खाना भी नसीब नहीं होता.हम तो सोने जा रहे हैं बहुत नींद आ रही है."
परन्तु बात त भुलाव्ते ना रहे कि आज तरक्की परस्त देश में भी लोगन के झूठन खाये के पड़ता आज हमार देश केतना तरक्की कइले बा .फिर एक सवाल अपने आप में जेहन में उठे लागल कि भ्रष्टाचार ,बलात्कार,कालाबाजारी,अन्याय-अत्याचार ,चोरी-चकारी में इन्सान के 'मैं वाद' में पनप रहल बा .ई देश के नागरिक केतना आगे बढलबा अपने पूर्वज लोगन से?
भोरे-भोरे जब बच्चा लोगन उठल अउर नास्ता के टेबुल पर बइठल त कहे लागल "ये नहीं खायंगे वो नहीं खायेंगे"त ब हमार भइया रात के अंखियन देखल विरतांत कहलन त लड़कन बच्चन सब के दिमाग में बात ऐसन बइठ गईल अउर सब सुबके लगलन सन .जे खाना मिले ओकरा प्रेम से खाई के चाही न नुकर ना करे के चाही .प्रेम से खाना निमको रोटी में भी अमृत बन जा ला.अब त लडकन सब के ऐसन आदत पडी गईल बा .चुप-चाप खा लेवेला अगर बच्चन सब के ऐसन आदत पड़जाई त वक्त-बे वक्त हर परिस्थिति के आज के नौजवान पीढी सामना कर सकेला .जरूरत बाटे आज सब के आँख खोले के मन के अमीर सब से बड़ा अमीर होला.तब ही देश तरक्की करी.इ पैसा -कौड़ी सब इहे रह जाई
एगो गीत बाटे -"कहाँ जा रहा है तू जाने वाले ,अपने अन्दर मन का दिया तो जला ले."
आज के इ तरक्की के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं कि पहिले हमनी के इन्सान बनब.-वैष्णव जन तो तेने कहिये .................................................................के चरितार्थ करब.
"कहाँ जा रहा है तू जाने वाले ,अपने अन्दर मन का दिया तो जला ले."
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
it was a beautiful read !!!
ReplyDeleteसच्चाई यही है की आज पंद्रह रूपये में एक लीटर पीने का पानी मिलता है दूसरी और हमारे देश के पचास प्रतिशत लोग पंद्रह रूपये रोज़ कमाते है .
ReplyDeletebhut badhiya likha hai aunty ne.....aaj ke parivesh me bilkul sach baat:)
ReplyDeletekitni achchhi baat hai is lekh me. halanki bhojpuri main nahin janta par poora samajh gaya. dhanywaad evm shubhkamnaye
ReplyDeleteजरूरत बाटे आज सब के आँख खोले के मन के अमीर सब से बड़ा अमीर होला.तब ही देश तरक्की करी...
ReplyDelete"आज के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं के परी कि पहिले हमनी के नेक इन्सान बनब तब ही देश तरक्की करी..."
"आज के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं के परी कि पहिले हमनी के नेक इन्सान बनब तब ही देश तरक्की करी..."
ReplyDeletesandhya ji ki baat hamro baat baa
Saarthak sandesh deti behtrin rachna.
ReplyDelete-"कहाँ जा रहा है तू जाने वाले ,अपने अन्दर मन का दिया तो जला ले."...सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना...
ReplyDeleteयशवंत - तहार माताजी बड़ा सुन्दर - सुन्दर बात कहालिह !भोजपुरी इतना सुन्दर तथा शिक्षाप्रद बात लिखले बानीं की बहुत सुन्दर लागल ! हमके भोजपुरी याद आ गईल ! बड़ा मधुर जबान ह ! प्रस्तुति के लिए बधाई बा !
ReplyDeleteसही विवेचना की है आपने ।
ReplyDeleteyashvant ji ye sach hai ki bachchon me apne badon se hi gun aate hain aapme ye gun apne aadarniy mata pita se hi aaye hain ye ham sab bhi bhali bhanti jan gaye hain.bahut achchha likha hai aapki mummy ne.unhe hamari aur se badhai .
ReplyDeleteआपको लेखन की कला अपने माता-पिता दोनों से मिली है.. बहुत अच्छा लगा भोजपुरी में लिखा लेख, बहुत बहुत शुभकामनायें आप सभी को !
ReplyDeleteउम्दा, सारगर्भित लेख हेतु...पूनम माथुर जी को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति ... अच्छा लगा पढ़ना ...थोड़ी कठिनाई आई ..फिर भी पढ़ लिया :):)
ReplyDeletevery nice.
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपकी माता जी को सादर नमन. अपनी भाषा में ऐसा आलेख पहली बार पढ़ा. आभार.
ReplyDeleteVicharniy baaten liye post.... Bahut Badhiya
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती सुन्दर रचना...पूनम माथुर जी को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व सटीक , समयानुकूल बातें कही हैं माता जी ने.चिंतन व मनन करने योग्य.
ReplyDeletesunder aur sarthak prayas ke liye badhai
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ... प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteतरक्की केवल एक ही ओर से नहीं होनी चाहिए ... परिपूर्ण प्रगति ही उद्देश्य है ... बहुत सुन्दर आलेख ... माताजी को प्रणाम !
ReplyDeleteसुन्दर आलेख.
ReplyDeleteजैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeletebahut sundar jiwan ke karibi tathyon par aadharit
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