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04 September 2023

उजालों की तलाश में........

उजालों की तलाश में आया था, अंधेरे मिले।
जब अंधेरे पसंद आए, सुनहरे सवेरे मिले।

और फिर ऐसा ही अक्सर होता गया।
जो अच्छा लगता, दूर होता गया।

चाहत फूलों की की, गले कांटे मिले।
हर कदम पे झूठे वादे मिले।

किसी ने कहा था कि फरिश्ता हूं मैं।
दोस्ती का सच्चा रिश्ता हूं मैं।

मगर अब जान पाया, कि सिर्फ छला ही गया।
एकतरफा खुद ही था, मिला ही क्या।

मिल कर सब रंग भी, बे रंग ही मिले।
बंद मुट्ठी में बचे सिर्फ शिकवे- गिले।
.
- यशवन्त माथुर©
03092023

26 August 2023

क्या कोई समझेगा ......?

क्या कोई 
समझ पाएगा
उस मासूम मन का
अंतर्द्वंद्व 
जिसका आवरण
बंटा हुआ है
अनंत मानव निर्मित
व्यवहारों में।
क्या कोई 
समझा पाएगा
उस मासूम
कोमल चेहरे का दोष
जिस पर पड़ते 
चांटों की आवाज़ से
गूंजते 
सामाजिक माध्यमों ने ही
जन्म दिया है
इस वैमनस्यता को।
नहीं
कोई नहीं समझेगा
उसका दर्द
कोई नहीं समझाएगा
परिणाम
इस भयावहता के
क्योंकि
हमारे ज्ञान
हमारी संस्कृति से 
ऊपर हो चले 
पूर्वाग्रहों के बादल
छंटेंगे
अवश्यंभावी
परिवर्तन और
नई क्रांति के 
बाद ही।

-यशवन्त माथुर©
www.yashpath.com
26082023

15 August 2023

प्यासा भूखा पंद्रह अगस्त.........-यश मालवीय ©


सुविख्यात कवि एवं रचनाकार आदरणीय यश मालवीय जी की ताजा कविता

सूखा सूखा पंद्रह अगस्त
प्यासा भूखा पंद्रह अगस्त

मर गया आंख का पानी है
किस्सा किस्सा बलिदानी है
हंसते से महल दुमहले हैं
टूटी सी छप्पर छानी है

पेशानी चिन्ता से गीली
रूखा रूखा पंद्रह अगस्त

फिर संविधान की बातें हैं
भारत महान की बातें हैं
रमचरना का चूल्हा ठंडा
बस आन बान की बातें हैं

वंदन करता आज़ादी का
हारा चूका पंद्रह अगस्त

खादी में सब कुछ खाद हुआ
तब कहीं देश आज़ाद हुआ
कल जिसको गोली मारी थी,
उसका ही ज़िंदाबाद हुआ

फिर घाव पुराना मुंह खोले
दिल में हूका पंद्रह अगस्त

मत कहो इसे सरकारी है
ये तो तारीख़ हमारी है
पर लाल क़िला ख़ुद ख़ून पिए,
जगमग जगमग तैयारी है

ये किसने भाषण में भर भर
मुंह पर थूका पंद्रह अगस्त ।

-यश मालवीय ©

13 August 2023

मजदूर हूं, मजबूर नहीं

कल का हिसाब क्या रखूं
आज का कुछ पता नहीं।
बेवजह खफा होते हैं वो
जब की कोई खता नहीं।

यूं बैठे-ठाले दौरों के इस दौर में
खानाबदोश हूं चलते फिरते ठौर में।

फिर भी जो मैं हूं, मैं ही हूं आखिर।
दुनियावी फितरतों में कोई फकीर नहीं।

ये और बात है कोल्हू का बैल हूं, माना।
मजदूर हूं अदना सा, लेकिन मजबूर नहीं।

-यशवन्त माथुर©
08072023

03 July 2023

दर्द और दवा .....

मुट्ठी भर दवाएं दर्द मिटा तो सकती हैं, मगर
उस दर्द के कड़वे सबक बाकी रह ही जाते हैं।

यूं हम को लगता है अब चलेंगे सीना तान कर
अनचाहे वक्त की बैसाखी बन ही जाते हैं।

भले बे नतीज़ा रहे आखिरी पल, लेकिन
बनके तस्वीर दीवार पे सज ही जाते हैं।

यशवन्त माथुर
24062023

30 April 2023

बेटियाँ तो वो भी हैं ....

वो 
जो जहाजों में उड़ती हैं 
जंगों में भिड़ती हैं 
साहस के 
कीर्तिमान बनाकर 
हर मैदान को जीतती हैं ...
आज बैठी हैं 
पालथी मारकर 
अवशेष 
लोकतंत्र की देहरी पर, 
सिर्फ 
इस उम्मीद में 
कि 
हममें से कोई 
अगर जाग रहा हो ....
अपने कर्मों से 
अगर न भाग रहा हो ..
तो ऋचाओं , सूक्तों और श्लोकों 
की परिधि से बाहर निकल कर 
सिर्फ इतना मान ले 
और मन में ठान ले -
वो बेटियाँ किसी और की नहीं 
दंगलों की मिट्टी के हर कण की हैं 
देश के गौरवशाली हर क्षण की हैं 
लेकिन दुर्भाग्य! 
आँख पर काली  पट्टी बांधे 
हम 
नए भारत के लोग 
ले चुके हैं शपथ 
सिर्फ 
अन्याय के साथ की। 

-यशवन्त माथुर©
30042023

29 April 2023

किससे कहूँ...?

किससे कहूँ...? 
कि गुजरते वक़्त के किस्सों में, 
अपना हिस्सा मांगते-मांगते थक गया हूँ।  

किससे कहूँ...? 
कि अस्वीकृति को स्वीकार करते-करते, 
जिस राह चला था उससे भटक गया हूँ।

किससे कहूँ...? 
कि कभी गाँव था, अब शहर बनते-बनते 
गहरी नींव के अंधेरे में उजाले को तरस गया हूँ।  

किससे कहूँ...? 
कि आदम हूँ तो देखने में 
ज़माने ने जम के मारा, बेअदब हो गया हूँ। 

-यशवन्त माथुर©
29042023

09 April 2023

सुनो ......4

सुनो! एक तिहाई अप्रैल बीतने को है...  धूप अपने रंग दिखाने लगी है... बिल्कुल वैसे ही.... जैसे होली के बाद तुम पर भी चढ़ गया है..... बदली संगत का बदला हुआ रंग। 
तुमको पता हो या ना हो ...लेकिन ...मुझे हो चुका था पूर्वानुमान.... कि दूरियों के  नए बोए हुए बीज नहीं लेंगे... ज्यादा समय अपना रूप बदलने में। 
सुनो! जरा याद करो मेरे वो शब्द ....जब मैंने कहा था कि आज जैसा एक दिन आएगा..... और देखो! ...आ भी गया। 


-यशवन्त माथुर©
09042023

16 March 2023

#Moon _ Some clicks by me







-YashwantMathur©

13 March 2023

सुनो ....... 3

सुनो! 
उस दिन तुमने कहा था ना .....कि मैं जलता हूँ। ....मैं चुप रहा था..... इसलिए नहीं..... कि मेरे पास जवाब नहीं था बल्कि.... इसलिए ....कि मैं चाहता था..... कि उस दिन जीत तुम्हारी हो। 

वैसे गलत तुमने कुछ कहा भी नहीं। पता है क्यों?.... क्योंकि मैं जलता हूँ ...हाँ मैं जलता हूँ ...आसमां में चमकते सूरज को देखकर ......मुझे होती है जलन.... कि मैं रोशनी नहीं दे सकता। ....... रात को चमकते चाँद को देख कर भी जलता हूँ ..... कि चाँदनी रात का खूबसूरत मुहावरा बनना ......मैं अपने प्रारब्ध से  लिखवाकर नहीं लाया ........और हाँ जलाती तो मुझे मावस की रात भी है......  क्योंकि सिर्फ वही साक्षी होती है.... तुम्हारे हर सुख......  हर दुख की।  

सुनो! 
मैं हर स्याह कमरे में ......दीये की हर बाती से जलता हूँ ....हर काजल से जलता हूँ ......हर उस शेष-अवशेष से जलता हूँ .....जो सहभागी होता है........तुम्हारी हर कदम-ताल का। ...... इस जलन का ......कारण!.... सिर्फ इतना..... कि मुझे राख बनने में ....अभी सदियाँ बाकी हैं। 

-यशवन्त माथुर©
13032023 

09 March 2023

#sunset a few clicks by me


















14 February 2023

सुनो...... 2

सुनो! आज प्रेम का त्यौहार है..... मैं अपने आस-पास देख रहा हूँ वो सारे चेहरे...... जो कल तक मुरझाए हुए थे लेकिन आज खिले हुए हैं......  वो चेहरे! जिनको मिल गया है प्रेम...... वो चेहरे! जिन्होंने महसूस किया है प्रेम..... और ... वो चेहरे! जिनके इर्द-गिर्द.... गुलाब की मासूम पंखुड़ियों ने कर दिए हैं.....  अपने हस्ताक्षर।  इन चेहरों के बीच...   काश! एक दर्पण होता ......उस दर्पण में .......एक अक्स तुम्हारा होता... और..... दूर कहीं.... तुम्हारा अपना... 'मैं'..... खुश हो रहा होता...... तुम्हारी खिलती मुस्कुराहट के ......एक दर्जन भाव देख कर। 

सुनो!  तुम जहां भी हो.....तुमको आज का दिन मुबारक।   

-यशवन्त माथुर©

09 February 2023

सुनो ...... 1

सुनो! ..... मैं जानता हूँ....  कि तुम और मैं नहीं चल सकते एक ही राह पर... कि तुम्हारी राह अलग है और मेरी अलग ... कि तुम आसमाँ सी ऊंचाई हो और मैं... मैं? मैं सिर्फ एक परकटा परिंदा हूँ..... जो भर नहीं सकता परवाज़..... जो दे नहीं सकता आवाज़..... जो छू नहीं सकता तुम्हारे कंधे ...... जो  धरती की गोद में सर रखकर ताकता  रहता है........  हर घड़ी तुम्हें ......सिर्फ तुम्हें!.......  पता है क्यों? ............क्योंकि हर दूरी के बाद भी मुझे उम्मीद है....... कि एक दिन समय को भ्रम होगा क्षितिज का .....और उस क्षितिज पर वही  एक शब्द कहने का कि ....  'सुनो'!......... (मैं वही हूँ)। 


-यशवन्त माथुर©
09022023

29 January 2023

काश!


काश!
समय को बदल पाता 
या उससे कुछ कह पाता 
गर मानव रूप में होता, तो 
लग कर गले 
आँखों से बह पाता। 

काश!
कुछ ऐसा लिख पाता 
जिसमें इतिहास 
सिमटा होता 
पुरा पाषाण से वर्तमान तक 
समय का हर हिस्सा होता 
छूटा न कोई किस्सा होता। 

काश!
थोड़ा थम पाता 
प्रलय का आभास पाकर 
जीवन के हर अभ्यास में 
काश!
समय को बदल पाता। 
.
-यशवन्त माथुर©
29012023

06 January 2023

यह रात इतनी सुनसान क्यों है?


खामोशियों में मचा
घमासान क्यों है?
यह रात 
इतनी सुनसान क्यों है?

वो बच्चे कहां गए
जो गलियों में चहकते थे
वो लोग कहां गए
जो खा-पी के टहलते थे?
.
वो फूल कहां गए
जो क्यारियों में महकते थे
ओस की बूंदों में खिलकर
हवा में बहकते थे

यह सर्दी का असर है
या ज़माना ही बदल गया?
ऊपर की सफेदी
कालिख से अनजान क्यों है?
.
यह रात
इतनी सुनसान क्यों है?

-यशवन्त माथुर
05012023

01 January 2023

नया साल कुछ इस तरह मने

इंसान 
इंसान ही रहे 
शैतान न बने। 
 
नया साल 
कुछ इस तरह मने। 

कुछ ऐसा हो 
कि हर भूखे को रोटी मिले 
खुले आसमां के नीचे 
कोई न झोपड़ी मिले। 

कुछ ऐसा हो 
कि मुरझाए न फूल 
जो कोई खिले 
हों शिकवे सारे दूर 
गले जब कोई मिले। 

भले ही कोहरा 
पसरा हुआ हो बाहर 
दिलों के भीतर 
हर दिन किसी त्योहार सा मने। 

नया साल 
कुछ इस तरह मने। 


-यशवन्त माथुर©
01012023 

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