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28 March 2020

कारवां गुजर जाने दो......

जो करना है तुमको
करते रहना मगर
उन्हें एक ठौर पाने तो दो
कारवां गुजर जाने दो।

वो इस उम्मीद में थे
कि हाथ खाली न होंगे
जो देखते हैं ख्वाब
सिर्फ खयाली न होंगे।

लेकिन पता क्या था
दिन एक ऐसा भी आएगा
जो उनका है उनसे ही
दूर हो जाएगा।

समय चक्र सबका है
सब में न भेद हो जाने दो
निकला जो मंजिल की तरफ
वो कारवां गुजर जाने दो।

-यशवन्त माथुर ©
28/03/2020

27 March 2020

कुछ कर नहीं सकता .......












ऐसे मंज़र हैं यहाँ
और वो कहते हैं
मतलब खुद से रखो
दूसरों की तो
दूसरे ही सोचते हैं।

कहीं घास चरता बचपन है
अपने घोंसले को लौटता बहुजन है
कहीं बदसलूकी है और
कहीं फेंका जा रहा राशन है।

कहीं मटर छीलते अफसरान
तीसरे पन्ने पर छापे जाते हैं
बरसते डंडों के निशान
कहीं पीठ पर पाए जाते हैं।

ये वो है जिसे अमीरी ने बोया
और गरीबी काट रही है
एक थे कभी जो उनको
ये मुसीबत बाँट रही है।

वो अब भी कायम हैं
अपनी स्वार्थी बातों पर
मैं अब भी कायम हूँ
अपने उन्हीं जज़्बातों पर।

ये जानकर भी
कि नाकारा हूँ
इन गलियों में घूमता
एक आवारा हूँ
चाहता हूँ कि
बना दूँ
इस मर्ज की
मैं ही कोई दवा
लेकिन
कुछ कर नहीं सकता
दुआ देने के सिवा ।

-यशवन्त माथुर ©
27/03/2020


livehindustan.com

26 March 2020

अफसोस! अब तक ज़िंदा हूँ..

आसमान में उड़ता
एक बेखौफ परिंदा हूँ
अफसोस! अब तक ज़िंदा हूँ।

कोशिशें
उन्होंने कीं तो बहुत
तीरों से भेदने की
गर्दन और
धड़ को अलग करने की
ये मेरी किस्मत
कि अभी तक बच निकला हूँ
अफसोस! अब तक ज़िंदा हूँ।

वो सोचते रहे
आसान है
कुरेदना मेरे मन को
क्योंकि उनकी नज़रों में
मैं हमेशा
कमजोर ही रहा हूँ
अफसोस! अब तक ज़िंदा हूँ।

-यशवन्त माथुर ©
26/03/2020 

25 March 2020

सब अपने घर में हैं....

(चित्र साभार-गूगल/फ़ेसबुक )
ये समय का चक्र है 
कि कोई मजे में है 
दीवारों के भीतर
मखमली पर्दों 
और आरामतलबी की 
कैद में है। 

ये बात और है 
कि कुछ लोग 
सड़क के किनारों पर 
खाली पेट और 
सहमी आँखों के साथ 
ढलती दुनिया के 
संभल जाने की 
उम्मीद में हैं। 

ये जो कुछ भी है 
क्या है 
इतनी समझ तो नहीं 
असर इतना है 
कि सब अपने घर में हैं। 

-यशवन्त माथुर ©
25/03/2020

24 March 2020

हम सब गंदे हैं ...

अंधे हैं
हाँ हम सब अंधे हैं
दिखते हैं साफ़
पर बहुत गंदे हैं
हाँ बहुत गंदे हैं।
अपने उजले
आवरण के भीतर
चेहरे पर लगे
मुखौटों की
कई परतों के भीतर
हमारी आखिरी
वास्तविक सतह
ढो रही है
कभी न मिटने वाली
कालिख
और रपटीली
काई
जिस पर बे-असर हैं
सारी सावधानियाँ
और उपकरण
क्योंकि
इस अंतिम स्थिति का
स्वाभाविक चरम
विनाश के सिवा
और कुछ भी नहीं।

-यशवन्त माथुर ©
24/03/2020

23 March 2020

कुछ लोग-47

खुद
सामने आने के बजाय
कुछ लोग
चलते हैं
अपनी चालें
उन ना-समझ मोहरों से
जो होते हैं बे-खबर
प्रत्यक्ष के
परोक्ष से।
पर वो नहीं जानते
कि ये मोहरे ही
अक्सर उनके
विभीषण बनकर
दिखा देते हैं
असत्य के भीतर
कहीं गहरे से दबा
सत्य।
कई उजले मुखौटों के
सौन्दर्य को
दर्पण में निहारते
कुछ लोग
जानकर भी
अनजान बने रहते हैं
कि उनकी
बतकहियों के तूफान में
शांत रहने का अर्थ
आत्मसमर्पण नहीं
सामने वाले का
संकल्प होता है।

-यशवन्त माथुर ©
23/03/2020

21 March 2020

वो सबको खुश न रख पाता......

जलते जलते दीया भी
है अक्सर बुझ जाता ।
जो दबा उसके भीतर
समझ कोई न पाता। 

उसके तल पर घना अंधेरा
लौ भले ही दिखलाती सवेरा।
थोड़ा गिरती -थोड़ा उठती
करम अपना वो करती रहती।

व्यंग्य बाणों से बिधते रह कर
अपना जीवन जीता जाता ।
हर दीये का एक ही किस्सा
वो सबको खुश न रख पाता।

-यशवन्त माथुर ©
21/03/2020

09 March 2020

होली मुबारक..


भंग में रंगों  की तरंगें  मुबारक
गली में नुक्कड़ों में  हुड़दंगे मुबारक।
बच्चों की टोली को ठिठोली मुबारक
ठंडाई और गुझिया की होली मुबारक।

सब ओर बरसते गुलाल मुबारक
फागों के रागों को सुर ताल मुबारक।
बुजुर्गों को यादों की हर झोली मुबारक
कहानियों और किस्सों की होली मुबारक।

मुबारक मुबारक-मुबारक मुबारक
दोस्तों को यारों की महफिल मुबारक।
अमन  और चैन की हर बोली मुबारक
जो करती है एक सबको  होली मुबारक ।

-यशवंत माथुर 




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