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14 February 2019

कफन पर 'प्यार' लिख कर वो.........

कफन पर 'प्यार' लिख कर वो, वतन पर मर-मिट जाते हैं।
एक हम ही हैं जो अपनी चादर में, और सिमट ही जाते हैं।
यह युद्ध नहीं फिर भी आखिर क्यूँ,  लम्हे ऐसे आते-जाते?
अपनी सीमा के भीतर ही क्यूँ, कतरे लहू के  बहते जाते ?
यह अंत नहीं आरम्भ है बंधु! अब और शहीद न होने देंगे ।
हिन्द का एक मजहब है सेना,अब इसको और न खोने देंगे ।
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पुलवामा के शहीद सैनिकों को विनम्र श्रद्धांजलि!

-यश ©
14/02/2019



08 February 2019

कुछ लोग -43

तलाश पाते हैं
सिर्फ कुछ ही लोग
मटमैली चादर के
किसी सिरे पर
कहीं खोई हुई
उम्मीद की
किसी धुंधली सी
रेखा को
लेकिन
अधिकतर
सिर्फ ढोते रहते हैं
उसी स्याहपन को
जो छितराया रहता है 
हर ओर
यहाँ-वहाँ
सिर्फ इसलिए
क्योंकि
नहीं जुटा पाते
हिम्मत
कुछ लोग
अपने सीमित दायरे से
बाहर निकल आने की।

-यश ©
08/02/2019

05 February 2019

अगर समय भी कुछ कह पाया तो.....

सुनो!...ये समय जो चल रहा है न ...न जाने क्यों कभी-कभी ऐसा लगता है कि ...काश! कभी रुक पाता।..... काश! कभी कह पता वह भी अपने मन की। हम तो चूंकि इंसान हैं ...या कहें कि प्राणी हैं.... क्योंकि हम सब अपनी अपनी भाषा में....अपने-अपने तरीके से समय के इन्हीं पलों में ....एक दूसरे ....से कुछ न कुछ कह-सुन लेते हैं ...अपना मन हलका कर लेते हैं ...लेकिन लगातार चलता हुआ यह समय बहुत  चाह कर भी ...अपने मन की कुछ कह नहीं कह पाता ...क्योंकि...समय की नियति में सिर्फ चलना है....निर्बाध चलना ।......बस चलना और सिर्फ चलते ही रहना । यह समय....अगर कभी कुछ भी कह पाया  ....तो निश्चित ही समय के साथ हम सब ...बस ठहर ही जाएंगे ....हमेशा के लिए। 
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-यश©
05/02/2019 

03 February 2019

धूप और कोहरा .....


आज सुबह से घना कोहरा छाया हुआ है। यह कोहरा अपने भीतर कई उम्मीदों की धूप समाए हुए है, लेकिन यह धूप कब निकलेगी इस बारे में किसी को खबर नहीं।
कोई कह रहा था कि कहीं किसी और कोने में बहुत अच्छी धूप खिली है जो अपने भीतर गहरा अंधेरा समेटे हुए है।
लेकिन फिर भी जैसे हम अनजान बन कर बस देखते रहते हैं सिर्फ वही जो हमें बाहरी तौर पर दिखता है। नहीं दिखता तो केवल भीतर का सच ....भीतर का दर्द जो हम या हमारे सामने वाला हमेशा अपने साथ लेकर चलता है।
कारण सिर्फ एक है .....सबके लिए सब सुखी हैं लेकिन अपनी अपनी तरह से सभी डूबे हुए हैं ....अपने चेहरे पर मुस्कुराहटों का मुखौटा लगाए ....सबको मालूम है ...सबका सच।

-यश ©
03/02/2019

02 February 2019

चल दिया............

बे-अरमान आया था
बा-अरमान चल दिया
मुकद्दर में जो था मेरे
लेकर वही चल दिया। 

न सोचा था कभी कि
अश्क ऐसे भी होते हैं
न खुशी जो न किसी
गम के कभी होते हैं।

ये तलब थी न कभी कि
तलफ ऐसा होगा मेरा
स्याह की तमन्ना लिए
हरफ उजला होगा मेरा।

माना कि वो थी दास्ताँ
अब यह रास्ता नया है 
वो  एक दौर था कभी
जो अब  गुजर गया  है।

बे- मुकाम आया था
बा -मुकाम चल दिया 
जो नज़र के धोखे थे
ले कर उन्हें चल दिया।

-यश ©
02/फरवरी/2019 

01 February 2019

इक भूली दास्ताँ बन जाऊं .......

गुज़र जाऊं कि
इक भूली दास्ताँ बन जाऊं
मर जाऊं कि
फिर कभी याद न आऊं
पा लिया सब कुछ
अब  खोने को कुछ न बचा
ये ठौर ऐसा है कि
रुकने को कुछ न बचा
आखिरी तमन्ना है कि
बहुत जीता हार कुछ तो जाऊं
समय संग बीत जाऊँ कि
फिर इधर न लौट कर आऊँ।

-यश ©
24/01/2019 
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