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19 September 2019

उम्मीदें और हम ......

हमारा आज
हमारा कल
हमारा हर पल
चलता है
तो सिर्फ
उन उम्मीदों के साथ
जो
समय का हाथ थाम कर
सिर्फ बढ़ती ही जाती हैं
मृगतृष्णा में
धकेलती ही जाती हैं
और हम
बस उन उम्मीदों के
पूरा होने की चाहत लिए
धँसते ही जाते हैं
फँसते ही जाते हैं
एक अजीब से भंवर में
जहाँ रोशनी नहीं
सिर्फ अंधेरा है
गहरा अंधेरा
दूर-दूर तक
किसी लकीर के
नामो-निशां के बिना
हमें
बस उतरना ही होता है
उठना नहीं,
क्योंकि
हमारा गिरना
द्योतक होता है
उम्मीदों के टूट कर
बिखरते जाने का।

-यश©
19/09/2019  

15 September 2019

कुछ लोग-46

कुछ लोग 
नहीं चाहते बंधना 
नियमों के 
असीम जाल में 
नहीं चाहते 
फंसना 
क्योंकि 
उनका दायरा 
संकुचित होता है 
चारदीवारी के भीतर 
खुद की 
खुशियों तक 
सीमित होता है। 

कुछ लोग 
नहीं चाहते हैं 
टोका जाना 
रोका जाना 
उनको भाता है 
अतिक्रमण....
लांघ कर 
दूसरों की सीमाएँ
चलते जाना।

और जब 
आता है 
ठहराव का 
अंतिम 
अनचाहा पड़ाव 
तब चाह कर भी 
कुछ लोग 
बंध नहीं पाते 
क्योंकि 
अवश्यंभावी होता है 
एक ही 
नीरस चलचित्र का 
बोझिल सा अन्त। 

-यशवन्त माथुर©
15/09/2019
 

08 September 2019

वो बादल भी बरसेंगे........

ये न सोचते कि वही होना है,
जो लिखा के लाए हैं लकीरों पर ।
नयी तकदीरों की झलक दिखती,
गर बदलती तसवीरों पर।
यूं रंग बदले हैं, कई रंग आगे भी बदलेंगे,
अब तक थे जो गरजे, वो बादल भी बरसेंगे।
बस एक इत्तेफाक की उम्मीदों में चराग बुझ जाते हैं
पल गुजरते जाते हैं ,चेहरे बदलते जाते हैं।

-यशवन्त माथुर  ©

06 September 2019

न जाने कौन से एहसानों में........?

वो....
बेसब्री से गिन रहे हैं दिन
मेरी तेरहवीं के इंतजार में
शायद आता है उनको मज़ा
मौत के ही व्यापार में।

हदें अपनी भूल कर
खुद हदों की उम्मीदों में
बेहयाई का ये आलम है
लकीरों के फकीरों में।

है ऐलान यह कि सब अच्छे हैं 
उनके ही गुलिस्तानो में
जाने क्या समझते हैं खुद को
न जाने कौन से एहसानों में?

-यश ©
05092019

01 September 2019

क्या पार कर पाऊँगा?

यूं ही
समय के साथ चलते हुए
कभी-कभी ऐसा लगता है
मानो धारा
छोड़ देना चाहती हो
कहीं -किसी किनारे पर
अकेला
आत्ममंथन के
तिनके चुनने को।

वहाँ
उस किनारे पर
न जाने कितनी सदियों बाद
अनंत की परिक्रमा कर
गर मन चाहा
तो फिर लेने आएगी
खुद में समेटकर
बहा ले जाएगी
वही पुरानी
एक ही धारा। 

लेकिन !
लेकिन तब तक
अपने अंतिम क्षण तक
क्या पार कर पाऊँगा ?
विश्राम की
अग्नि परीक्षा।

-यश ©
01/09/2019

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