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26 November 2019

फिर भी चलते जाने को............

होती शुरू कहीं से धारा
कहीं मिल कर खो जाने को
कितने ही पड़ाव सहेजती
भविष्य से कह कर जाने को।

उठती-गिरती दर्द को सहती
पथ को अपने चलती रहती
जब तक मिल न जाती उसको
कोई मंजिल तर  जाने को।

ऐसी ही एक धारा बन कर
काश! कि मैं भी चलता जाता
राहों की कुछ सुनता जाता
और कुछ अपनी कहता जाता।

लेकिन जाने क्यूँ अब मुझको
मेरा मैं विद्रोही लगता
माना मनाता समय ये मुझको
मैं तब भी विपरीत ही चलता।

संघर्ष ही है सच्चा साया
समय पर साथ निभाने को
भले ही काँटे बिछे राह में
फिर भी चलते जाने को।

-यशवन्त माथुर© 
26/11/2019 


22 November 2019

अंत की प्रतीक्षा में.......

एक समय
आता है
एक समय
जाता है
अपने भीतर
बहुत से
दर्द समेटे
खुशियां समेटे
क्षणिक सुखों के
कुछ सूक्ष्म
पलों के बाद
दुनियावी मेला
छँट सा जाता है
और हम में  से
हर कोई
नये आरंभ की
प्रत्याशा में
गिनता रहता है
आती-जाती साँसें
अपने अंत की
प्रतीक्षा में।

-यश ©
22/11/2019

08 November 2019

जल ही जीवन है.......

जल ही जन है
जल ही मन है
.
जल ही जीवन है।
.
जल जल कर
जलता मानव
जल जल कर ही
बनता दानव ।
.
जलते जलते यूं ही चल कर
थक कर कहीं रुकता मानव ।
.
जल ही कर्ता
जल ही धर्ता
मीनों के हर
दु:ख का हर्ता।
.
जल ही अर्पण
जल ही प्रण है
.
जल ही जीवन है।

-यशवन्त माथुर ©
08/11/2019

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