शाम घनेरी हो चली है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
राह अंधेरी हो चली है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
चाँदनी बिखरने लगी है
टूट कर रात की बाहों में
शबनम अब गाने लगी है
सूनी सूनी फिज़ाओं में
मावस की आहट लगी है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
झुरमुटों में सरसराहट मची है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ
कल्पना रूठ कर चली है
कलम में हलचल मची है
मन स्वयंभू कवि है
सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ ।
©यशवन्त माथुर©