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30 January 2011

बापू! फिर से आ जाओ

कहते हैं लोग कि 
महान लोग अवतार लेते हैं 
और तार देते हैं 
बुझी हुई आशाओं को
एक नया दीप दिखा देते हैं 
पर मैं तलाश में हूँ 
आज एक अवतार की
जो यहीं कहीं हो शायद 
हमारे बीच कहीं 
हाँ बापू !मैं आपके अवतार 
को ढूढना चाहता हूँ 
बात करना चाहता हूँ 
और कहना चाहता हूँ 
कि इस अँधेरे में 
दहशत में 
आप फिर से वही 
निश्छल 
मुस्कराहट बिखेर दो 
धरती पर 
फिर से एक नयी 
क्रान्ति बन कर 
अहिंसा औ सत्य का 
स्वर नाद जगा जाओ 
बापू!
फिर से आ जाओ

28 January 2011

एक प्रश्न

बिन आहट आकर के क्यों 
मेरी तन्हाईयाँ छीन लीं तुमने  
मैं अकेलेपन में जीता था 
मेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने 

क्यों इस कदर अपनापन 
क्यों ये मोहब्बत दिखाते हो 
मावस की रात में क्यों 
चांदनी बन जाते हो 

ये जान कर कि तुम को 
दिया कुछ भी नहीं मैंने
फिर अपना हमकदम क्यों 
मुझको चुन लिया तुमने

और भी बहुत से होंगे
तेरी खुशबू को चाहने वाले
मैं भंवर नहीं फिर भी कैसे
मुझे महसूस लिया तुमने ?

26 January 2011

गणतंत्र को नमन करें


गाँवों कस्बों की टूटी फूटी सड़कों पर
हिचकोले लेती खटारा बसों और टैम्पुओं पर
लेट होती रेलों और महंगी उड़ानों पर
बदनाम गलियों सड़कों और कूचों पर 
नीलाम होते खिलाडियों की सजी हुई मंडी पर 
आन्दोलनों,हडतालों और महंगाई की दबंगई पर
घोटालों और अमीर गरीब की बढती खाई पर
जूठन को चाटते ठिठुरते नंगे बचपन पर
पंचायतों में जलती मोहब्बत की चिताओं पर
तार तार होती आबरुओं और दहेज़ की दहकती आग पर
खून के प्यासे रिश्तों और झगडे फसाद पर
छुट भैय्ये नेताओं और भ्रष्टाचार पर
नापाक आतंक, घुसपैठ और बम धमाकों पर
एसी का मजा लेती ब्यूरोक्रेसी पर  
'अमीर और ताकतवर' (???) होते जा रहे इंडिया पर
आइये गर्व करें
रोते भारत के गणतंत्र को 
नमन करें !!

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सभी पाठकों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
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23 January 2011

क्या आज क़े नौजवान नेताजी का पुनर्मूल्यांकन करवा सकेंगे?

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को कौन नहीं जानता.आज उनके जन्म दिवस पर प्रस्तुत है मेरे पिताजी श्री विजय माथुर का यह महत्वपूर्ण आलेख जो "स्वतंत्रता दिलाने में नेताजी का योगदान-(जन्म दिवस पर एक स्मरण)" शीर्षक से उनके ब्लॉग पर भी उपलब्ध है.जिसे यहाँ क्लिक करके भी देखा जा सकता है.
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'नेताजी' का मतलब सुभाष चन्द्र बोस से होता था.(आज तो लल्लू-पंजू ,टुटपूंजियों क़े गली-कूंचे क़े दलाल भी खुद को नेताजी कहला रहे हैं) स्वतन्त्रता -आन्दोलन में भाग ले रहे महान नेताओं को छोड़ कर केवल सुभाष -बाबू को ही यह खिताब दिया गया था और वह इसके सच्चे अधिकारी भी थे.जनता सुभाष बाबू की तकरीरें सुनने क़े लिये बेकरार रहती थी.उनका एक-एक शब्द गूढ़ अर्थ लिये होता था.जब उन्होंने कहा "तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा" तब साधारण जनता की तो बात ही नहीं ब्रिटिश फ़ौज में अपने परिवार का पालन करने हेतु शामिल हुए वीर सैनिकों ने भी उनके आह्वान  पर सरकारी फ़ौज छोड़ कर नेताजी का साथ दिया था. जिस समय सुभाष चन्द्र बोस ने लन्दन जाकर I .C .S .की परीक्षा पास की ,वह युवा थे और चाहते तो नौकरी में बने रह कर नाम और दाम कम सकते थे.किन्तु उन्होंने देश-बन्धु चितरंजन दास क़े कहने पर आई.सी.एस.से इस्तीफा  दे दिया तथा स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े.  जब चितरंजन दास कलकत्ता नगर निगम क़े मेयर बने तो उन्होंने सुभाष बाबू को उसका E .O .(कार्यपालक अधिकारी )नियुक्त किया था और उन्होंने पूरे कौशल से कलकत्ता नगर निगम की व्यवस्था सम्हाली थी.




वैचारिक दृष्टि से सुभाष बाबू वामपंथी थे.उन पर रूस की साम्यवादी क्रांति का व्यापक प्रभाव था. वह आज़ादी क़े बाद भारत में समता मूलक समाज की स्थापना क़े पक्षधर थे.१९३६ में लखनऊ में जब आल इण्डिया स्टुडेंट्स फेडरशन की स्थापना हुई तो जवाहर लाल नेहरु क़े साथ ही सुभाष बाबू भी इसमें शामिल हुये थे.१९२५ में गठित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उस समय कांग्रेस क़े भीतर रह कर अपना कार्य करती थी.नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,जवाहर लाल नेहरु तथा जय प्रकाश नारायण मिल कर कांग्रेस को सम्माजिक सुधार तथा धर्म-निरपेक्षता की ओर ले जाना चाहते थे.१९३८ में कांग्रेस क़े अध्यक्षीय चुनाव में वामपंथियों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को खड़ा किया था और गांधी जी ने उनके विरुद्ध पट्टाभि सीतारमय्या को चुनाव लड़ाया था. नेताजी की जीत को गांधी जी ने अपनी हार बताया था और उनकी कार्यकारिणी का बहिष्कार करने को कहा था.तेज बुखार से तप रहे नेताजी का साथ उस समय जवाहर लाल नेहरु ने भी नहीं दिया.अंत में भारी बहुमत से जीते हुये (बोस को १५७५ मत मिले थे एवं सीतारमय्या को केवल १३२५ )नेताजी ने पद एवं कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया और अग्र-गामी दल
(फॉरवर्ड ब्लाक) का गठन कर लिया.ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को नज़रबंद कर दिया.क्रांतिवीर विनायक दामोदर सावरकर क़े कहने पर नेताजी ने गुप-चुप देश छोड़ दिया और काबुल होते हुये जर्मनी पहुंचे जहाँ एडोल्फ हिटलर ने उन्हें पूर्ण समर्थन दिया. विश्वयुद्ध क़े दौरान दिस.१९४२ में जब नाजियों ने सोवियत यूनियन पर चर्चिल क़े कुचक्र में फंस कर आक्रमण कर दिया तो "हिटलर-स्टालिन "समझौता टूट गया.भारतीय कम्युनिस्टों ने इस समय एक गलत कदम उठाया नेताजी का विरोध करके ;हालांकि अब उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि यह भारी गलती थी और आज उन्होंने नेताताजी क़े योगदान को महत्त्व देना शुरू कर दिया है.हिटलर की पराजय क़े बाद नेताजी एक सुरक्षित पनडुब्बी से जापान पहुंचे एवं उनके सहयोग से रास बिहारी बोस द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज (I .N .A .) का नेतृत्व सम्हाल लिया.कैप्टन लक्ष्मी सहगल को रानी लक्ष्मी बाई रेजीमेंट का कमांडर बनाया गया था. कैप्टन ढिल्लों एवं कैप्टन शाहनवाज़ नेताजी क़े अन्य विश्वस्त सहयोगी थे.

नेताजी ने बर्मा पर कब्ज़ा कर लिया था.आसाम में चटगांव क़े पास तक उनकी फौजें पहुँच गईं थीं."तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा"नारा इसी समय नेताजी ने दिया था. नेताजी की अपील पर देश की महिलाओं ने सहर्ष अपने गहने आई.एन.ए.को दान दे दिये थे,जिससे नेताजी हथियार खरीद सकें.नेताजी की फौजें ब्रिटिश फ़ौज में अपने देशवासियों पर बम क़े गोले नहीं तोपों से पर्चे फेंक्तीं थीं जिनमें देशभक्ति की बातें लिखी होती थीं और उनका आह्वान  करती थीं कि वे भी नेताजी की फ़ौज में शामिल हो जाएँ.इस का व्यापक असर पड़ा और तमाम भारतीय फौजियों ने ब्रिटिश हुकूमत से बगावत करके आई .एन .ए.की तरफ से लडाई लड़ी.एयर फ़ोर्स तथा नेवी में भी बगावत हुई.ब्रिटिश साम्राज्यवाद  हिल गया और उसे सन १८५७ की भयावह स्मृति हो आई.अन्दर ही अन्दर विदेशी हुकूमत ने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया किन्तु दुर्भाग्य से जापान की पराजय हो गई और नेताजी को जापान छोड़ना पड़ा.जैसा कहा जाता है प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई जिसे अभी भी संदेहास्पद माना जाता है. (यहाँ उस विवाद पर चर्चा नहीं करना चाहता ).

मूल बात यह है कि,१९४७ में प्राप्त हमारी आज़ादी केवल गांधी जी क़े अहिंसक आन्दोलन से ही नहीं वरन नेताजी की "आज़ाद हिंद फ़ौज " की कुर्बानियों,एयर फ़ोर्स तथा नेवी में उसके प्रभाव से बगावत क़े कारण मिल सकी है और अफ़सोस यह है कि इसका सही मूल्यांकन नहीं किया गया है.आज़ादी क़े बाद जापान सरकार ने नेताजी द्वारा एकत्रित स्वर्णाभूषण भारत लौटा दिये थे;ए.आई.सी.सी.सदस्य रहे सुमंगल प्रकाश ने धर्मयुग में लिखे अपने एक लेख में रहस्योदघाटन किया था कि वे जेवरात कलकत्ता बंदरगाह पर उतरने तक की खबर सबको है ,वहां से आनंद भवन कब और कैसे पहुंचे कोई नहीं जानता.आज आज़ादी की लडाई में दी गई नेताजी की कुर्बानी एवं योगदान को विस्मृत कर दिया गया है.क्या आज क़े नौजवान नेताजी का पुनर्मूल्यांकन करवा सकेंगे?उस समय नेताजी तथा अन्य बलिदानी क्रांतिकारी सभी नौजवान ही थे.यदि हाँ तभी प्रतिवर्ष २३ जनवरी को उनका जन्म-दिन मनाने की सार्थकता है,अन्यथा थोथी रस्म अदायगी का क्या फायदा ?


                                               -----------------विजय माथुर

20 January 2011

मैं नेता हूँ!

है चुनती मुझे जनता कि
वो मुझे जान ती है
अपना अमूल्य विश्वास
मुझ पर वारती है
पर मैं वार करता हूँ
कुचल देता हूँ उम्मीदों को
मैं लोलुप तन मन और धन का
खरीद लेता हूँ चश्मदीदों  को
क्या बड़ा क्या छोटा
गली का छुटभैय्या ही सही
मैं भले पांचवीं फेल
जी भर निरीहों को पेरता हूँ
/
मैं नेता हूँ!

18 January 2011

शायद रूठ गयी है गौरय्या

[चित्र साभार:गूगल]
बचपन में
रोज़ सुबह मैं
आसमां को ताका करता था
और देखा करता था
झुण्ड के झुण्ड
अनोखी आकृतियाँ बनाकर
उडती जाती चिड़ियों को
उनमे से कुछ आ जातीं
उतर आतीं
मेरे घर के हाते में
नीम्बू के पेड़ पर
दिन भर सुनातीं
अपना संगीत
जाड़े की धूप में
बाहर फैली हरी दूब पर
आपस में अठखेलियाँ करतीं
नन्हीं गौरय्या

कभी कभी मैं
शरारत में
किचन में जाकर
चावल के डब्बे में से ले आता
मट्ठी  भर कर दाने
और बिखेर देता
बाहर

एक एक करके
ढेर सारी
चिड़ियाँ आकर के
चुगती एक एक दाना
और पल भर में फुर्र हो जातीं

लेकिन
अब न बचपन है
और न गौरय्या

शायद रूठ गयी है
गौरय्या
अब नज़र नहीं आती
गौरय्या

16 January 2011

मिले सुर मेरा तुम्हारा - नया बनाम पुराना

"मिले सुर मेरा तुम्हारा" इस गीत को बचपन में दूरदर्शन पर अक्सर देखा करता था.अभी इसका नया वर्ज़न भी आया है.जिसके बारे में फेसबुक पर प्रमोद जोशी जी से मालूम चला.निजी रूप से मुझे पुराना वाला ही ज्यादा अच्छा लगता है .आप भी देखिये और अपनी राय दीजिये.

पहले  देखिये पुराना ओरिजनल वीडियो जो दूरदर्शन पर कभी आया करता था-

                                                                   

और अब देखिये ये नया वाला-
    

                                                                       
मेरे अपने विचार से नया वाला वीडियो बदलते भारत की तस्वीर प्रस्तुत ज़रूर करता है पर पुराने वीडियो को सुनने में मिठास ज्यादा मालूम पड़ती है.
आपका क्या कहना है?

14 January 2011

ओ! हवा की लहरों

ओ!पल पल बहती
जीवनदायिनी हवा की लहरों
कुछ ठहर कर
आज मुझ से कुछ बातें कर लो
तुम छू कर मुझे निकल जाती हो
अनंत की ओर
मेरे जैसे और भी बहुतों को
देती हो एहसास जीवन का
तो क्यूँ न
दो पल का विराम ले कर
कुछ अपनी कह दो
और कुछ मेरी सुन लो
पर मैं जानता हूँ
तुम्हारे ठहरने मात्र से ही
कितने ही ठहर जायेंगे
मैं चाहता  हूँ
और सिर्फ चाहता ही रह जाऊँगा
और तुम बहती रहोगी
अनवरत
शायद रुकना तुमको आता ही नहीं
चलते वक़्त की तरह.

12 January 2011

आज कुछ धूप खिली है

(चित्र गूगल से साभार)
बहुत दिनों बाद
मौसम ने करवट ली है 
आज कुछ धूप खिली है 

छंट  गयी कोहरे की चादर 
एक नयी ऊर्जा मिली है 
आज कुछ धूप खिली है

 चहक उठे परिंदे भी 
उफ्फ! आलस्य से मुक्ति मिली है 
आज कुछ धूप खिली है 

आज कुछ धूप खिली है 
कल के मुरझाये हुए पत्तों को 
शायद कुछ राहत मिली है 

आज कुछ धूप खिली है.

09 January 2011

यादें

बहुत खामोशी से
दिल को झकझोर देती हैं यादें
जाने क्यों इतनी कठोर होती हैं यादें
मैं भूलने की कोशिश तो करता हूँ
पर कुछ भूल नहीं पाता हूँ
क्यों इतना कमजोर अक्सर
बना देती हैं यादें                                    
                                                        
कुछ खट्टी,कुछ मीठी
कुछ बोलती,कुछ शांत सी
बीते पलों को खरोंचती
क्यों कुलबुलाती हैं यादें

कभी खुशी की छटा बन कर
कभी गम की घटा बन कर
बहुत याद आती हैं यादें
अक्सर रूलाती हैं यादें.

06 January 2011

उसने ठीक ही किया

ये तो होना ही था
जो हुआ
जो मैंने सुना
जो आपने देखा
'उसने' मार दिया खंजर
ले लिया बदला
वो मांग रही है मौत 
अब
जायज़ जुर्म की
सजा के रूप में

यही है इन्साफ
इन्साफ रहित इस युग में
उसने कर लिया
खुद से इन्साफ

उसने ठीक ही किया.



[विशेष-इन पंक्तियों की भावना दो दिन पहले समाचार पत्रों में प्रकाशित एक घटना से प्रेरित है]

04 January 2011

मैं आज़ाद हूँ

अब नहीं कोई बंधन
न दोस्ती
न दुश्मनी
चलता  जा रहा हूँ
अपनी ही धुन में
बेखबर ज़माने से
बदनीयती से
बदले की आग से
शिकवों से
बे असर
मैं आज़ाद हूँ !

01 January 2011

नया वर्ष मुबारक हो सब को

इस सदी की शुरआत में यानि वर्ष 2000 की पूर्व संध्या पर (तब मैं कक्षा 10 का छात्र था) मूल रूप से लिखी गयी इस कविता को 10 वर्ष के अंतराल के बाद आप सभी सुधि और विद्वत पाठकों के समक्ष वर्ष 2011 की शुभकामनाओं के साथ  इस ब्लॉग पर सामयिक  परिवर्तनों के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ-

नया वर्ष मुबारक हो सब को
लाये ये खुशियाँ ही खुशियाँ
हर दिन एक नया दिन हो
हर घड़ी हर पल नया हो
बहें प्रेम पूरित नदियाँ

नया वर्ष मुबारक हो सब को.

नया वर्ष मुबारक हो सबको
हिन्दू- मुस्लिम- सिख- ईसाई
शंकाराचार्य, मौलवी साहब
गुरु और फादर को
सीता- राम, राधा- कृष्ण
नानक, अल्लाह और जीसस को

नया वर्ष मुबारक हो सबको.

नया वर्ष मुबारक हो सबको
सीमा पर डटे जवानों को
जो मातृ भू की रक्षा हित
बली चढ़ा देते प्राणों को
जिनकी कठोर हुंकार से
दुश्मन कांपने लगता
जिनके मुक्कों की टक्कर से
पर्वत भी हिलने लगता
माँ भारती के दुलारे बेटों को

नया वर्ष मुबारक हो सबको 

नया वर्ष मुबारक हो सबको 
मंत्रियों और संतरियों को 
नेताओं अभिनेताओं को 
अटल, मुलायम, सोनिया गाँधी 
गोविंदा, बच्चन, बब्बर को 
सी डब्लू जी और टू जी को 
सोनी को 'के बी सी' को 

नया वर्ष मुबारक हो सबको  

नया वर्ष मुबारक हो सबको
दुनिया के हर रहने वाले को
मानव को मानवता को
अनेकता में एकता को
हर भाषा हर बोली को
बच्चों की हर टोली को

नया वर्ष मुबारक हो सबको.




[आप सभी को नव वर्ष 2011 की ढेर सारी शुभ कामनाएं.]


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