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29 March 2022

गेहूं का खेत और सभ्यता


पके हुए गेहूं से 
भरा-पूरा एक खेत 
और 
इस जैसे 
कई और खेत 
कभी 
किसी दौर में 
जकड़े रहते थे
बीघों फैली मिट्टी को 
जड़ों के 
रक्षासूत्र से। 

उस रक्षासूत्र से 
जिसकी आपस में उलझी 
कितनी ही गांठें
तने से मिलकर 
ले लेती थीं रूप 
बालियों जैसे 
खूबसूरत 
स्वर्ण कणों का।

लेकिन अब
अब   
कंक्रीट की 
सभ्यता के बीचों-बीच 
साँसों को गिनती 
झुर्रीदार 
बूढ़ी मिट्टी
किसी दुर्योधन के  
कँगूरेदार 
घोंसले की नींव में 
दफन हो कर 
हो जाना चाहती है 
इस लोक से मुक्त 
क्योंकि 
उसकी इज्जत का रखवाला 
कलियुग में 
कहीं कोई कृष्ण 
अब शेष नहीं।  

-यशवन्त माथुर©
29032022 

12 March 2022

पूर्णविराम की राह पर ....


यूं!
जैसे शिखर से
मिलने के बाद 
धीरे-धीरे 
सूरज भी खोता है 
अपना यौवन 

यूं!
जैसे चरम से 
मिलने के बाद
शेष रहता है 
सिर्फ शून्य 

यूं! 
जैसे प्रतीक्षा के 
दीर्घ अंतराल के बाद
प्रारब्ध का संघर्ष 
निकल पड़ता है 
विजयपथ की ओर 

शायद! 
ठीक वैसे ही 
महत्त्वाकांक्षाओं 
और अपेक्षाओं के 
बदलते मौसमों के साथ 
पूर्णविराम की राह पर 
गर रख सका 
पहला कदम 
तो मेरे हिस्से का 
अवशेष नाम 
शब्दों के झुरमुट में  
गुमशुदा हो ही  जाएगा 
एक अदृश्य अपूर्ण 
बिन्दु बनकर!

-यशवन्त माथुर©
12032022
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