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14 January 2020

ज़िंदगी लगती है जंजीर की तरह.....

बेतरतीब खिंची लकीर की तरह
ज़िंदगी लगती है जंजीर की तरह ।
वक़्त की पैनी धार पर रगड़ते हुए
डरता है दिल भी अब धड़कते हुए ।
है आलम यह कि फासले ये कहने लगे
जो अब तक थे आदम अब बदलने लगे।
मिलता नहीं अब कोई फकीर की तरह
दीवारों पर सब लटके हैं तस्वीर की तरह।

-यशवन्त माथुर ©
14/01/2020 

09 January 2020

वक़्त के कत्लखाने में -17

समय की तीखी
पैनी धार पर चलते हुए
अक्सर यही सोचा करता हूँ
कि क्या होता
अगर मैं
मैं न होता
कोई और होता ?
क्या होता
अगर मेरी ही तरह
मेरे ही जैसा
कोई और होता ?
खैर
अपने इसी अस्तित्व को
स्वीकारते हुए
अंधेरी गलियों में
भटकते हुए
तलाश रहा हूँ
खुद का सच
जो कहीं
दबा हुआ है
वक़्त के कत्लखाने में।

-यशवन्त माथुर ©
09/01/2020

02 January 2020

हम वृद्ध नहीं हैं

भले ही दिखते दीन-हीन
कृशकाय शरीर और तेज विहीन
किसी युवा से कम नहीं हैं
हम वृद्ध नहीं हैं।

घर में तन्हा बैठे-लेटे
युग का समृद्ध इतिवृत्त समेटे
जोश तनिक भी कम नहीं है
हम वृद्ध नहीं हैं।

हम बीज भविष्य का वर्तमान में
अस्ताचल से दिन मान में
नई सुबह पर शाम नहीं हैं
हम वृद्ध नहीं हैं।

समय की गर्मी से तपकर
कितने ही मीलों को चल कर
पुष्प नहीं तो कंटक भी नहीं हैं
हम वृद्ध नहीं हैं।

-यशवन्त माथुर©
22/12/2019 

01 January 2020

ऐसी उम्मीद नए साल पर

जो जीते हैं गुरबत में
आए मुस्कान उनके चेहरों पर
ऐसी  उम्मीद नए साल पर।

फसल खूब हो खेतों में
हर किसान की झोली जाए भर
ऐसी  उम्मीद नए साल पर।

रहें शांत सीमाएं अपनी
यूं न प्रहरी जाएं मर
ऐसी उम्मीद नए साल पर।

रहे अनुकूल यह धरती अपनी
न ताप बने, न शीत लहर
ऐसी  उम्मीद नए साल पर।

सद्भाव बना रहे अपनों का
भाईचारे को न लगे नज़र
ऐसी  उम्मीद नए साल पर।

सूर्य ग्रहण हो-चंद्र ग्रहण हो
लगे ग्रहण न इंटरनेट पर
ऐसी  उम्मीद नए साल पर।

नव वर्ष 2020 की अनंत शुभकामनाएं। 

-यशवन्त माथुर


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