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12 August 2019

समय की तसवीरों पर....

पूछता हूँ पता खुद से
खुद को बता नहीं पाता
जमाने की बातों में हरकदम
खुद को ही तलाशता।

क्या पाया क्या नहीं
अक्सर कुछ खोया ही है
बड़े दर्द हैं यहाँ
खुद को ढोया ही है।

न मालूम क्या लिखा है
हाथों की चंद लकीरों पर
जो दिखना है दिखेगा ही
समय की तसवीरों पर।

-यश ©
12/08/2019

04 August 2019

स्वार्थ की जंजीरों में......

कोई दोस्त नहीं होता, दुश्मनों की बस्ती में
जीते हैं कुछ लोग ,बस अपनी ही मस्ती में।

उगते सूरज को सभी, यहाँ सलाम करते हैं
ढलने वाले से , रुखसती का काम करते हैं।

परछाई भी जहाँ, छोड़ देती है साथ निभाना
किसी का सगा नहीं, यह बदलता ज़माना।

मायने अब वो नहीं, जो कभी हुआ करते थे
कायदे अब वो नहीं, बंधे जिनसे रहा करते थे।

दौड़ होती है यहाँ, अक्सर नयी तकदीरों में।
जकड़ गयी है, दोस्ती स्वार्थ की जंजीरों में।

-यश ©
04/08/2019 
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