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26 November 2021

ऐसे ही नहीं कोई मजदूर होता है

तसला भर सपनों को
रोज़ सर पे ढोता है
ऐसे ही नहीं
कोई मजदूर होता है।
 
झोला भर जिंदगी उससे
क्या कुछ नहीं कराती
परदेसियों की बातें
क्या-कुछ नहीं दिखातीं।
 
दूसरों के मखमल सजा कर
खुद ज़मीन पे सोता है
ऐसे ही नहीं 
कोई मजदूर होता है।
 
हर शाम बातें करता है
सिरहाने की ईंट से
मौत रेंगकर निकलती है
अक्सर उसके करीब से।

ख्यालों की पाड़ लगाकर
हर महल से ऊंचा होता है
ऐसे ही नहीं
कोई मजदूर होता है।

-यशवन्त माथुर©
26112021
.

25 November 2021

गर कुछ लिखा न जा सका....

गहराती रात के साथ
शब्द भी खो जाते हैं
कहीं गहरी नींद में
अक्षर भी सो जाते हैं ...
जो दिन में
मन के कहीं भीतर उभर कर
सफर तय करते हैं
होठों से उंगलियों में जकड़ी
कलम तक का
लेकिन शाम होते होते
कागज की देहरी पर
विस्मृत हो जाते हैं..
विलुप्त हो जाते हैं..
क्योंकि अंधेरे की आहट पाकर
अवचेतन ओढ़ लेता है
आलस्य की लंबी चादर
और फिर
अर्द्ध मूर्च्छा में
रह जाता है
इंतजार
सिर्फ उस सुबह का
जिसमें
गर कुछ लिखा न जा सका
तो फिर से चलने लगता है
कटु सत्य की धुरी पर
समय का वही चक्र।

-यशवन्त माथुर©

24112021

22 November 2021

सफर अभी जारी है...

अंतहीन राहों से
गुजरते हुए
कुछ गिरते हुए
कुछ संभलते हुए
सफर अभी जारी है।
 
समय चक्र में मिलते हैं
कुछ फूल भी
काँटे भी
होती हैं पत्थरों से
दिल की कुछ बातें भी।
 
इस बिसात पर
वजूद को तलाशते हुए
कभी शह,
कभी मात खाते हुए
सफर अभी जारी है।

अक्सर निहारता हूं
कंक्रीट की इमारतों के शिखर से
उगता हुआ सूरज..
फिर शाम की उदासी में
कहीं ढलता हुआ सूरज..
यूं करने को कुछ है तो नहीं
फिर भी लगता कि कुछ
अभी बाकी है
सफर अभी जारी है।

-यशवन्त माथुर©

07 November 2021

अभी बाकी है....

ढल गया एक दिन ऐसे ही, तो क्या हुआ,
फिर एक रोशन दिन की, उम्मीद अभी बाकी है।

उदासियों के बादल भी छंट कर बरसेंगे कभी तो,
सोंधी खुशबू मिट्टी की, उठनी अभी बाकी है।

ख्यालों का क्या है, आते जाते ही रहते  हैं,
गर ठहरे शब्द, तो पन्नों पर, उतरना अभी बाकी है।
.
-यशवन्त माथुर©
06112021

04 November 2021

दीप जलते रहें....


मन मिलते रहें,
चेहरे खिलते रहें,
दीप जलते रहें।
 
प्रवास से लौटकर,
विचार के प्रवाह में,
दिशाएं भी कुछ कहें,
दीप जलते रहें।
 
क्रांति के मार्ग पर,
शांति के गीतों में,
एक होके सब बहें,
दीप जलते रहें।
 
उदय की कथा तो हो,
अस्त की व्यथा न हो,
शामें जब ढलती रहें,
दीप जलते रहें।​

-यशवन्त माथुर©
31102021
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