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29 January 2023

काश!


काश!
समय को बदल पाता 
या उससे कुछ कह पाता 
गर मानव रूप में होता, तो 
लग कर गले 
आँखों से बह पाता। 

काश!
कुछ ऐसा लिख पाता 
जिसमें इतिहास 
सिमटा होता 
पुरा पाषाण से वर्तमान तक 
समय का हर हिस्सा होता 
छूटा न कोई किस्सा होता। 

काश!
थोड़ा थम पाता 
प्रलय का आभास पाकर 
जीवन के हर अभ्यास में 
काश!
समय को बदल पाता। 
.
-यशवन्त माथुर©
29012023

06 January 2023

यह रात इतनी सुनसान क्यों है?


खामोशियों में मचा
घमासान क्यों है?
यह रात 
इतनी सुनसान क्यों है?

वो बच्चे कहां गए
जो गलियों में चहकते थे
वो लोग कहां गए
जो खा-पी के टहलते थे?
.
वो फूल कहां गए
जो क्यारियों में महकते थे
ओस की बूंदों में खिलकर
हवा में बहकते थे

यह सर्दी का असर है
या ज़माना ही बदल गया?
ऊपर की सफेदी
कालिख से अनजान क्यों है?
.
यह रात
इतनी सुनसान क्यों है?

-यशवन्त माथुर
05012023

01 January 2023

नया साल कुछ इस तरह मने

इंसान 
इंसान ही रहे 
शैतान न बने। 
 
नया साल 
कुछ इस तरह मने। 

कुछ ऐसा हो 
कि हर भूखे को रोटी मिले 
खुले आसमां के नीचे 
कोई न झोपड़ी मिले। 

कुछ ऐसा हो 
कि मुरझाए न फूल 
जो कोई खिले 
हों शिकवे सारे दूर 
गले जब कोई मिले। 

भले ही कोहरा 
पसरा हुआ हो बाहर 
दिलों के भीतर 
हर दिन किसी त्योहार सा मने। 

नया साल 
कुछ इस तरह मने। 


-यशवन्त माथुर©
01012023 
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