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29 June 2024

अंतरिक्ष कार्यक्रम अच्छा है अगर .........

हमने 
बना दिया है 
कूड़ा घर 
इस दुनिया के पार 
सुदूर अंतरिक्ष को भी
कभी  
बे मतलब की 
तथाकथित 'खोजों'
का नाम देकर ,  
कभी 
इंसानों को भेजकर 
हम भरते हैं दंभ 
अपने 'विकास' के पथ का। 
ऐसा विकास 
जो चाँद, मंगल, बुध 
और हर ग्रह पर पहुँच कर 
धरातल पर 
भूख-गरीबी 
और बेरोजगारी से जूझते 
फुटपाथों पर सोने 
और जूठन खाने वाले 
हर इंसान को 
सिर्फ 
अफ़ीमी ख्वाब दिखाता है 
अपनी बस्ती बसाने के।
विज्ञान के नाम पर 
दुनिया का 
हर अंतरिक्ष कार्यक्रम 
हो सकता है   
सच्चा, सस्ता और अच्छा 
बशर्ते 
वह सीमित रहे 
सिर्फ रक्षा -
परस्पर सम्प्रेषण के 
अनुसंधान 
और विकास तक। 

-यशवन्त माथुर© 
29 जून 2024 

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25 June 2024

40 पार के पुरुष-3

40 पार के पुरुष
बंद कर देते हैं
नए सपने देखना
क्योंकि
उनके पुराने
अधूरे सपने
बाई फोकल
और प्रोग्रेसिव लेंस की
उधेड़बुन में
कहीं अटक कर
अनकहे 
और अनसुने ही
रह जाते हैं।
क्योंकि 
उनमें से कुछ
अपवादों की झिझक में
चाह कर भी
अपने जज़्बात 
कह नहीं पाते हैं।

40 पार के पुरुष
वर्तमान को
नियति मान कर
यथास्थिति में
पथरीले रास्तों पर
चलते हुए
विलुप्त हो जाते हैं
तथाकथित अपनों की 
याददाश्त की
परिधि से।

-यशवन्त माथुर©
 
25 जून 2024

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24 June 2024

सेलिब्रिटीज को जीने दो....

वो 
जो अपनी मेहनत से
पा लेते हैं
एक मुकाम
हमारे, आपके,सबके बीच
जो बन जाते हैं
'सेलिब्रिटीज' के रूप में
एक बड़ा नाम।
उन 
असाधारण लोगों का
एक जीवन
हम लोगों की तरह
साधारण भी होता है,
उनकी भी होती है
निजता और मर्यादा
हमारे, आपके घरों की तरह
उनके यहां भी
टंगे होते हैं
परदे
जिनके पार देखने की
कोशिश का
कोई कारण और हक 
हमें
तब तक नहीं
जब तक
उसका असर 
पड़ न रहा हो
देश-काल और,
आम जन मानस की 
आर्थिक-सामाजिक
परिस्थिति पर।

-यशवन्त माथुर© 
24 जून 2024

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23 June 2024

कुछ लोग-57

[कुछ लोग शृंखला की सारी पोस्ट्स यहाँ क्लिक करके देखी जा सकती हैं]


अक्सर 
हमारे आस-पास के 
वातावरण में 
वास्तविक रिश्तों से 
इतर भी 
कुछ लोग 
बना लेते हैं 
एक रिश्ता 
अपनत्व का 
अंतरंगता का...... 
इसलिए नहीं 
कि वे 
महसूस करते हैं 
वैसा ही 
बल्कि, इसलिए 
कि 
वे जान सकें 
जाने-अनजाने राज़ 
जिनको 
अपने स्वार्थ में 
कर सकें प्रसारित 
कहीं और 
किसी और की 
नापाक फ़ितरतों को 
पहुंचाने के लिए 
अंजाम तक। 
भेड़ के आवरण में 
भेड़िया का प्रतिरूप 
ऐसे कुछ लोग
अगर जल्द ही नहीं आए 
पहचान में 
तो कोई नहीं रोक सकता
अनपेक्षित 
विध्वंस को।  

-यशवन्त माथुर© 
23 जून 2024
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04 June 2024

लाइनमैन......

वो!
जो
नौतपा की 
झुलसाने वाली गर्मी में
चरम बिंदु को छूते
ताप के मान को
अपनी नियति जान कर
कंक्रीट के जंगलों में बसे
आधुनिक आदिमानवों की
विद्युत पूर्ति करने को
अपने अस्तित्व से खेलते हुए
अपशब्दों को झेलते हुए
चढ़ जाता है
लोहे के
ऊंचे दहकते खंबों पर
यह जानते हुए भी
कि यह गलती उसकी नहीं
बल्कि 
उन सभी की है
जो 
मानकों को
अतिक्रमित कर
आनंद लेते हैं
शीतल
वात अनुकूलन का।

वो!
जो
अतिवृष्टि
और घनघोर शीतलहर में 
पसीने से सराबोर होकर
उपभोक्ता के मान की 
सेवा करते हुए
झेलता है चीरहरण
अपने मान का
सम्मान का।

वो!
जो हर मौसम में
अपने कर्तव्यपथ पर
निलंबन और बर्खास्तगी की
तलवार की धार पर
सधे कदम रखकर
सिर्फ अपनी
सफल संविदा के लिए
रहता बेचैन है-

लाइनमैन है!
.
✓यशवन्त माथुर©,
31मई 2024

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