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04 September 2020

निजीकरण : दूर के ढोल सुहावने --- राकेश श्रीवास्तव

आज कल निजीकरण एक विमर्श का विषय बना हुआ है। वर्तमान सरकार का सारा ध्यान येन केन प्रकारेण सरकारी संस्थानों का निजीकरण करके अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था को समाप्त करने पर लगा हुआ है। रेलवे से लेकर बैंक तक सभी जगह या तो विलय की बात चल रही है या इन संस्थानों का  निजीकरण करने के प्रयास किये जा रहे हैं और आश्चर्य की बात तो यह है कि समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा इन प्रयासों का खुलकर समर्थन किया जा रहा है। निजीकरण वास्तव में दूर के ढोल सुहावने लगने जैसा ही है। इसकी अव्यावहारिकता पर प्रकाश डालते हुए सेवनिवृत्त बैंकर श्री राकेश श्रीवास्तव जी ने एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखी है जो साभार यहाँ प्रस्तुत है -

" निजीकरण के लाभ दूर से ही अच्छे लगते हैं।  पहले निजी बैंकों को ही ले।  ग्लोबल ट्रस्ट बैंक को बदहाल होने पर ओबीसी में मर्ज किया गया। यस बैंक की शिखा शर्मा ने नोट बंदी में क्या किया सबको पता है।  वीडियोकॉन और आईसीआईसीआई बैंक दोनों प्राइवेट हैं । चंदा कोचर मैडम के कारनामे सबके सामने हैं। उन पर मेहरबानी के लिए बीमार होने के बावजूद जेटली साहब का लिखा ब्लॉग शायद याद हो। यस बैंक की हालत भी किसी से छुपी नहीं है। एनबीएफसी को भी शामिल करेंगे तो यह बढ़ता ही जाएगा। 

रही बात निजीकरण के अच्छी होने की तो इसमें यह नही भूलना चाहिए कि अपने देश की कंपनियो की लाभ की ललक इतनी बढ़ जाती है कि वो कंपनी को ही खाने लगती है।  जेट एयरवेज का उदाहरण सामने है। एसबीआई को उसको बेल आउट करने के प्रयास के लिए सरकार के निर्देश पर पैसा देना पड़ा।  इसके अतिरिक्त तमाम निजी कंपनियों का पैसा आखिरकार बैंकों को राइट ऑफ करना पड़ता है। 

आपने स्कूल और अस्पताल की बात की है।  अब भी भारत की अधिकांश जनता सरकारी स्कूल और अस्पताल पर ही निर्भर है।  यदि यह न हो तो करोड़ों बच्चे बेसिक शिक्षा से भी वंचित रह जाएंगे।  इसी प्रकार इलाज के लिए अभी भी बहुसंख्यक आबादी या तो सरकारी अस्पतालों पर निर्भर है या फिर झोला छाप डॉक्टरों पर।  उनके पास भरपेट भोजन के पैसे तो है नहीं। प्राइवेट स्कूल व प्राइवेट डॉक्टर की फीस तो एक सपना है।  शिक्षा व चिकित्सा दोनो ही आजकल सबसे अच्छे धंधे हैं। 

इसमें कोई शक नहीं कि गैर सरकारी उपक्रमों मे हमारे भाई ही काम करते है। पर उनका भी किस तरह से शोषण हो रहा है।  ठेके पर रखे जाने वाले किसी भी कर्मचारी को देख लीजिए चाहे वो गार्ड, सफाई कर्मचारी, अस्पतालों में कार्यरत कर्मचारी, कंप्युटर ऑपरेटर, टेक्नीशियन हो उनकी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा ठेकेदार की ही जेब में जाता है।" 

राकेश श्रीवास्तव
एक रिटायर्ड बैंकर 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को   "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"   (चर्चा अंक-3815)   पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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