एक अक्स देखता हूं
बादलों में कहीं
गुमनाम हो चुका
एक शख्स देखता हूं
डूबते सूरज के साथ
आसमां में खोते हुए
सुबह फिर मिलेंगे
कहते हुए
यह उसका भरोसा है
और मेरे अंदर का डर
बनते अंधेरे में उसको
सवेरा सोचता हूं..
बादलों में कहीं
एक अक्स देखता हूं।
16102021
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
अंधेरे के बाद ही सवेरा होता है और हर सवेरा शाम में ढल जाता है, गहरी बात
ReplyDeleteबहुत गूढ़ बात कही है आपने यशवन्त जी।
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