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05 October 2012

रोज़ सुबह-शाम ..........

रोज़ सुबह-शाम
हर गली -हर मोहल्ले में
मची होती है
एक तेज़ हलचल
नलों में पानी आने की
आहट के साथ  
मेरे और सब के घरों में
टुल्लू की चीत्कार
शुरू कर देती है
अपना समूह गान

किसी की
कारें धुलने लगती हैं
किसी के डॉगी नहाने लगते हैं
और कोई
बस यूंही
बहने देता है
छत की
भर चुकी टंकी को

और उधर
बगल की बस्ती में
जहां रहते हैं
'नीच' और
'फुटपाथिया' लोग
जिनके पास टुल्लू नहीं -

म्यूनिस्पैल्टी के
नल से बहती
बूंद बूंद अमृत की धार को
सहेजने की कोशिश में
झगड़े होते हैं

पास के गड्ढे में
एक डुबकी लगा कर
हो जाता है 
बच्चों का गंगा स्नान
धुल जाते हैं
कपड़े और बर्तन

रोज़ सुबह -शाम
मैं यही सोचता हूँ
काश 'इनकी' मोटर बंद हो
और रुक जाए
छत की टंकी से
पानी का बहना
और 'वो' कर सकें
अपने काम आसानी से

पर
संपन्नता का
क्षणिक गुरूर
शायद महसूस
नहीं कर सकता
विपन्नता के
स्थायी भाव को!


©यशवन्त माथुर©

27 comments:

  1. पानी पानी रे! बहुत ही सार्थक रचना.. आभार!

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  2. बढ़िया विवरण |
    सटीक --यशवंत जी ||

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  3. हमारे सभ्य समाज का एक असभ्य चेहरा प्रस्तुत करती सार्थक रचना ...बहुत खूब!

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  4. पर
    संपन्नता का
    क्षणिक गुरूर
    शायद(यक़ीनन) महसूस
    नहीं कर सकता
    विपन्नता के
    स्थायी भाव को!
    बहुत खूब ! उम्दा अभिव्यक्ति !!
    शुभकामनाएं !!!!

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  5. सार्थक रचना....ऐसा ही होता है अक्‍सर हमारे आसपास..

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  6. शब्दों के आईने में साफ़ दिख रही 'वो' तस्वीर... सार्थक प्रस्तुति यशवंत !~God Bless!!!

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  7. बेहद सार्थक रचना....
    बहुत बढ़िया.

    अनु

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  8. बहुत सुन्दर कविता .

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  9. पानी सबके लिए महत्त्वपूर्ण है ... सार्थक रचना ।

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  10. अर्थपूर्ण सशक्त रचना

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  11. पर
    संपन्नता का
    क्षणिक गुरूर
    शायद महसूस
    नहीं कर सकता
    विपन्नता के
    स्थायी भाव को!

    प्राकृतिक श्रोतों का सब के द्वारा दुरुपयोग. बहुत सुन्दर चेतावनी.

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  12. जिसे संसाधन प्राप्त हैं वह उनके बर्बाद जाने से दुखी नहीं होता. जिसके पास संसाधन नहीं हैं उसे अभी संसाधनों पर अपने हक़ का पता नहीं चला. वह फिलहाल संसाधनों की बर्बादी पर पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं करता. सुंदर और सशक्त कविता.

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  13. पर
    संपन्नता का
    क्षणिक गुरूर
    शायद महसूस
    नहीं कर सकता
    विपन्नता के
    स्थायी भाव को!


    इस दर्द को बखूबी व्याख्यातित किया है।

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  14. बहुत खूबसूरत रूपक खींचा है...
    मन गद-गद हो गया ऐसे ही मौजूदा,माहौल पर निगाह गड़ाए रखिये...!
    शाबश...!

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  15. बहुत ही बढ़िया समागम

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  16. ई मेल से प्राप्त कमेन्ट-
    indira mukhopadhyay


    बहुत सुन्दरता से सटीक वर्णन किया है यशवंत जी, मुझे भी पानी का दुरुपयोग देख कर ऐसाही कष्ट होता है. लोग भी तो कम नहीं, सार्वजानिक नालों की टोंटिया चुरा लेते हैं, और हैण्ड पुमप का दुरुपयोग कर तोड़ डालते हैं, पानी की कीमत समझते ही नहीं|

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  17. paani anmol hai .........sarthak post yasdhwant ji .

    aapse ek baat aur kahani hai ki comments ke liye jaldi se option open nahi ho raha hai .....check kar len

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  18. पानी विन सब सून. सार्थक और उपयोगी रचना..शुभकामनाएं.यशवन्त..मेरा नया ब्लाँग
    "मन की राहें" मे तुम्हारा स्वागत है..

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  19. ब्लाँग है "बाल मन की राहें "

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  20. bilkul sahi...aur me indira ji ki baat se bhi sehmat hu....

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  21. सटीक और सार्थक लेखन...
    :-)

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  22. पानी की कीमत आज,भले न समझे कोय
    एक दिन ऐसा आयगा,पानी युद्ध फिर होय,,,,,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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  23. सुन्दर रचना... पढ़कर मन प्रसन्न हो गया...
    शुभकामनायें... कभी आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

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  24. बहुत उन्नत संवेदन शील दिल के भावों की अभिव्यक्ति आपने सही कहा है जल की एक बूँद भी हम बचाएं तो कितनो के काम आयें पर लापरवाही के यही नतीजें हैं

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  25. bhaut hi acche se aapne saral shabdo me apni baat kahi hai.... bhaut hi badiyaa sir ji....

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