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01 September 2014

शब्दों की दुनिया

जब देखता हूँ
डायरी के
भरे हुए पन्नों पर
बिखरे हुए जज़्बातों को
तो लगता है
शब्दों की यह दुनिया
कितनी विचित्र
किन्तु सत्य है ....

विचित्र इसलिये
कि मन की भित्ति पर
उभरी आड़ी तिरछी भावनाएँ
किसी प्रतिलिपि की तरह
इन पन्नों पर
हू ब हू
मेल खाती दिखती हैं .....

और सत्य इसलिये
कि इन पन्नों पर
जो दर्ज़ या दफ़न है
वह असत्य से कोसों दूर
बाहें फैलाए
कभी अपनी ओर खींचता सा
कभी आवाज़ देता सा लगता है ....

रंगबिरंगी स्याही से रंगे
डायरी के
इन चंद पन्नों पर
समाया रहता है
देश दुनिया का
पूरा इतिहास-भूगोल
खुशी-गम
बुढ़ापा और बचपन
जीवन का गूढ दर्शन ....
इसीलिए
जब देखता हूँ
बंद डायरी के
भरे हुए पन्नों पर
बिखरे हुए जज़्बातों को
तो लगता है
शब्दों की यह विचित्र
किन्तु सत्य दुनिया
बहुत आगे है
अमरत्व की कल्पना से।

~यशवन्त यश©

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 03 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. शब्दों की दुनिया, सचमुच अद्भुत ही होती है !

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  3. सुंदर भाव...

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  4. बहुत भावभीनी रचना |

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  5. शब्दों की यही दुनिया सत्य है !

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  6. शब्दों की दुनिया असीम है। उड़ान भरते जाइए।

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  7. wah kya baat hai yash ji...beautifuly written lines

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  8. बेहद भावपूर्ण रचना...

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