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16 October 2014

अच्छे दिन+अच्छे दिन

आटे दाल का भाव न पूछो
भरे बाज़ार पहेली बूझो
गुम हो गया चिराग का जिन्न
अच्छे दिन अच्छे दिन। 

आलू ,गोभी अकड़ दिखाता
मंडी जाना रास न आता
महंगाई के यह ऐसे दिन  
अच्छे दिन अच्छे दिन। 

देवियाँ अब भी लुटतीं पिटतीं 
अपमान के हर पल को सहतीं 
कहाँ कृष्ण ....यह कैसे दिन 
अच्छे दिन अच्छे दिन। 

दुखों मे जीता गरीब- किसान 
सूखा-बाढ़ से परेशान 
कम कीमत पर काटता दिन
अच्छे दिन -अच्छे दिन। 

टैक्स बचा कर टाटा टाटा 
एंटीलिया अंबानी बनाता 
फुटपाथों पर छत के बिन 
अच्छे दिन अच्छे दिन। 

काला धन कहीं नज़र न आता 
अब न कोई वापस लाता  
नमो -नमो जप जप के गिन 
अच्छे दिन अच्छे दिन ।

-यशवन्त माथुर ©
16102014

9 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (17.10.2014) को "नारी-शक्ति" (चर्चा अंक-1769)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. बहुत ही बढ़िया

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  3. उम्मीदों के डोर ना छोड़ो
    बुद्धि विवेक में साहस घोलो ,
    होगा कुछ न ,तेरे जागे बिन
    अच्छे दिन अच्छे दिन ......
    सुंदर रचना .....

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  4. अब लगता है कहीं अच्छे दिन भी एक अबूझ पहेली बनकर न रह जाय!
    ..बहुत सटीक सामयिक रचना

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  5. अब लगता है कहीं अच्छे दिन भी एक अबूझ पहेली बनकर न रह जाय!
    ..बहुत सटीक सामयिक रचना

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  6. सबको मिलकर लाने होंगे
    अच्छे दिन अच्छे दिन

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  7. बहुत अच्छा लिखा है...

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