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बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-05-2017) को
ReplyDelete"आहत मन" (चर्चा अंक-2628)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत खूब
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeletegagar me sagar....badhiya
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।
ReplyDeleteबहुत खूब ... चाहता क्या है होता क्या ही इंसान के साथ ...
ReplyDeleteभंवर से बाहर निकलने का भाव लेकर कविता को और विस्तार दीजिये। जीवन का अधूरापन एक कड़वा यथार्थ है लेकिन औरों को प्रेरणा के लिए मक़ाम तक पहुँचने के रास्ते कवि के कल्पनालोक से बाहर आने ही चाहिए। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप इस रचना में ज़रूर कुछ न कुछ और जोड़ेंगे। अधूरी बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteविस्तार देने की कोशिश करेंगे। लेकिन मेरे लिखे को 'कविता' न कहें। इस तरह का लिखा किसी भी दृष्टि से 'कविता' हो नहीं सकता। यह सिर्फ मन के उद्गार मात्र हैं।
Deleteधन्यवाद !
वाह !!बहुत खूब ।
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