मैं नहीं कवि 
न ही कविता को ही कह पाता हूँ 
बस जो भी मन में आता है 
वो ही लिखता जाता हूँ। 
है नहीं भान न ही ज्ञान 
रस छंद अलंकारों का
परिचय बस थोड़ा ही है 
काव्य के प्रकारों का। 
बस थोड़ा जो कुछ सहेजा समेटा 
और जो कुछ है देखा समझा
शब्दों की डोर में वो ही
थोड़ा पिरोता जाता हूँ । 
मैं नहीं कवि 
न ही कविता को ही कह पाता हूँ 
मन की कोर से जो निकलती
वो बात बताता जाता हूँ ।
23122020






















































