यूं तो
मन के हर कोने में
विचरते रहते हैं
ढेर सारे प्रश्न
और उनके
सटीक
या अनुमानित उत्तर
फिर भी
कुछ ऐसे प्रश्न भी होते हैं
जिनके उत्तर की चाह में
सैकड़ों योनियों में भटकते हुए
बीत जाते हैं
कितने ही पूर्व
और भावी जन्म।
हम
कितने ही चोले बदलते हुए
कितने ही देश-काल
और परिस्थितियों से जूझते हुए
कितनी ही भाषाओं -
संस्कृतियों से गुजरते हुए
संभावित मोक्ष की देहरी पर
दस्तक देते हुए भी
अतृप्त रह ही जाते हैं
क्योंकि
अपने अजीब से
मोहपाश में बांधकर
अनुत्तरित प्रश्नों का
एकमात्र लक्ष्य
अनुत्तरित ही रहना होता है
सदा-सर्वदा के लिए।
14052022
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (15-5-22) को "प्यारे गौतम बुद्ध"'(चर्चा अंक-4431) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
वाह!क्या बात है
ReplyDeleteसही है
ReplyDeleteदर्शन और अध्यात्म से जुड़ता मन ऐसा सोचता है।
ReplyDeleteसिर्फ प्रश्न ही अनुत्तरित नहीं रहते लक्ष्य भी दुर्लभ रहता है, विरलों को प्राप्त होता है।
विचारणीय भाव।
मोहपाश में बांधकर
ReplyDeleteअनुत्तरित प्रश्नों का
एकमात्र लक्ष्य
अनुत्तरित ही रहना होता है
सदा-सर्वदा के लिए।
..सटीक सुंदर रचना।