डर है
कि कहीं
जश्न के जलसों
कहीं
ग़म की बातों के साथ
आकार लेते
नि:शब्द से शब्द
कुछ कहने की
जद्दोजहद करते हुए
कैद ही न रह जाएं
हमेशा के लिए
वक़्त के कत्लखाने में।
10122023
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
सुन्दर
ReplyDeleteमुक्ति की चाह बनी रहे बस इतना ही काफ़ी है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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