40 पार के पुरुष
बंद कर देते हैं
नए सपने देखना
क्योंकि
उनके पुराने
अधूरे सपने
बाई फोकल
और प्रोग्रेसिव लेंस की
उधेड़बुन में
कहीं अटक कर
अनकहे
और अनसुने ही
रह जाते हैं।
क्योंकि
उनमें से कुछ
अपवादों की झिझक में
चाह कर भी
अपने जज़्बात
कह नहीं पाते हैं।
40 पार के पुरुष
वर्तमान को
नियति मान कर
यथास्थिति में
पथरीले रास्तों पर
चलते हुए
विलुप्त हो जाते हैं
तथाकथित अपनों की
याददाश्त की
परिधि से।
25 जून 2024
एक निवेदन-
इस ब्लॉग पर कुछ विज्ञापन प्रदर्शित हो रहे हैं। आपके मात्र 1 या 2 क्लिक मुझे कुछ आर्थिक सहायता कर सकते हैं।
मेरे अन्य ब्लॉग
आजकल तो अस्सी साल के लोग भी सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करते हैं
ReplyDeleteसभी तो नहीं हाँ कुछ पुरुष जिम्मेदारियों के बोझ तले ऐसा महसूसते होंगे।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
आ. यशवंत जी ! आपकी इस पोस्ट पर इस समय कोई विज्ञापन नहीं दिख रहा ।
सुंदर सृजन
ReplyDelete