वो सामने की सड़क
जिस पर खड़े हुए हैं महल-अटारी
जगमग जहाँ दिन रात हुए हैं
आलिशान हैं मोटर गाड़ी
वो महलों में रहने वाले
जो उड़न खटोलों में चलते हैं
जिनकी अपनी शान निराली
जो गर्दन सीधी कर चलते हैं
वो उन महलों की नारियां
खुला तन जिनका स्वाभिमान
और वो उन के रईसज़ादे
विलासितामय जिनका बचपन
मैं अक्सर देखता हूँ उनको
और फिर कहता हूँ खुदको
काश! उनके जैसा मैं भी होता
तो फिर गरीबी में न रहता
पर सड़क के उस पार
जहाँ वो टूटी फूटी झोपड़ पट्टी
जिसमें रात भर अँधेरा रहता
न दिया जलता न कोई बत्ती
उन झोपड़ियों में रहने वालों को
जो महनत मजदूरी करते हैं
साधारण सा उन का जीवन
जो इतने में ही खुश रहते हैं
वो झोपड़ियों की नारियां
छिपाती जो हैं अपना तन
जिनके खेलते नंगे बच्चे
साधारण सा जिनका बचपन
मैं अक्सर देखता हूँ उनको
और फिर से खुद को कहता हूँ
हाँ!! हाँ! मैं हूँ भारत का आम आदमी
मैं आजादी से रहता हूँ.
प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©
इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
-
दिन भर घर के बाहर की सड़क पर खूब कोलाहल रहता है और सांझ ढलते सड़क के दोनों किनारों पर लग जाता है मेला सज जाती हैं दुकानें चाट के ठेलों...
-
कुछ लोग जो उड़ रहे हैं आज समय की हवा में शायद नहीं जानते कि हवा के ये तेज़ झोंके वेग कम होने पर जब ला पटकते हैं धरती पर तब कोई नहीं रह प...
-
हम सिर्फ सोचते रह जाते हैं ख्यालों के बादल आ कर चले जाते हैं Shot by Samsung M30s-Copyright-Yashwant Mathur© मैं चाहता हूँ...
-
फ्यू चर ग्रुप की बदहाली की खबरें काफी दिन से सुनने में आ रही हैं और आज एक और खबर सुनने में आ रही है कि आई पी एल 2020 की एसोसिएट -स्पॉन्स...
-
किसान! खून-पसीना एक कर दाना-दाना उगाता है हमारी रसोई तक आकर जो भोजन बन पाता है इसीलिए कभी ग्राम देवता कभी अन्नदाता कहलाता है लेकिन ...
-
मेरे बाबा जी (Grand Father) स्वर्गीय ताज राज बली माथुर जी ने वर्ष 1955 -56 के लगभग सैन्य अभियंत्रण सेवाओं ( M E S) से नौकरी कीशुरुआत की ...
-
बरसाती रात के गहरे सन्नाटे में मौन के आवरण के भीतर मेरे मैं को खोजते हुए चलता चला जा रहा हूँ हर पहर बढ़ता जा रहा हूँ। एक अजीब सी दुव...
-
हँसिया-हथोड़ा चलाने वाला गर ऐसा पत्थर हो जाए संतुष्टि के फूलों जैसा वह भी कुछ तप कर मुस्काए ... वह दृश्य होगा सुकून भरा जब प...
-
काश! कि मैं बदल सकता ले जा सकता समय को वहीं उसी जगह जहाँ से शुरू हुआ था ये सफर लेकिन अपनी द्रुत गति से समय के इस चलते जाने में थोड़...

No comments:
Post a comment
मॉडरेशन का विकल्प सक्षम होने के कारण आपकी टिप्पणी यहाँ प्रदर्शित होने में थोड़ा समय लग सकता है।
कृपया किसी प्रकार का विज्ञापन टिप्पणी में न दें।
केवल चर्चामंच का लिंक ही दिया जा सकता है, इसके अलावा यदि बहुत आवश्यक न हो तो अपने या अन्य किसी ब्लॉग का लिंक टिप्पणी में न दें, अन्यथा आपकी टिप्पणी यहाँ प्रदर्शित नहीं की जाएगी।