सामने रखा
कोरा कागज़
एकटक देख रहा है
मुझ को
इस उम्मीद में
कि शायद कुछ अक्षर
लिखकर
उसको सहेज लूँ
मैं भी अलसाई आँखों से
उसे देख रहा हूँ
रोती कलम की आहें भी
सुन रहा हूँ
और
खुद से पूछ रहा हूँ
क्या लिखूं?
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
आज मैं क्या लिखूं?
ReplyDeleteहाँ बहुत दिन हो गए है,
ख्यालों के बादल भी कम हो गए है,
साफ़ साफ़ सा है विचारों का आसमां
इसी सोच में हूँ की आज मैं क्या लिखूं?
jo bhi man me aaye likh daliye .bahut khoob .
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteसुंदर ....अक्सर उमड़ पड़ते हैं यह मनोभाव....
ReplyDeleteबस ऐसे में एक हस्ताक्षर कर दीजिए।
ReplyDeleteकाग़ज को आपसे उम्मीद है उसका दिल मत तोड़िए कुछ तो लिखिए
ReplyDeleteओह
ReplyDeleteमन की कशमक्श को खूब शब्दों मे उतारा है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteन लिखना भी बहुत अच्छा लिख गये । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा आपने...बढ़िया है.
ReplyDelete______________________________
'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !
अरे वाह ! आपने तो सोचते सोचते बहुत सुन्दर लिख दिया है ... बहुत सुन्दर तरीके से उतारा है आपने अपनी सोच को
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDelete