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23 February 2011

उसकी खता क्या थी?

आना चाहती थी वो 
तुम्हारे जीवन में 
तुम्हारा अक्स बनके
बिखेरने को खुशियाँ

कि उसकी हर अदा पे 
मुस्कुराहटें तुमको भी मिलती 
जीती वो भी कुछ पल 
सौगातें उसको भी मिलतीं 

आना पायी वो 
देख न पायी  इस जहान को
क्यों छीन लिया तुमने 
आने वाली उस सांस को 

हो तुम कुसूरवार 
सब कहेंगे मगर 
अरे ये तो बात दो 
उसकी खता क्या थी?

(न तो मैं इसे शायरी कह सकता हूँ न कविता और न ही मैं उर्दू भाषा जानता हूँ बस इन पंक्तियों के माध्यम से स्त्री भ्रूण हत्या को रोकने का एक आह्वान करने का प्रयास मात्र किया है)

14 comments:

  1. इस सार्थक कविता के लिए आपको सलाम करने का जी चाहता है।

    ---------
    ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

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  2. उसकी यही खता थी कि वो कन्या थी, अच्छी प्रस्तुति !

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  3. ये शायरी या कविता से भी ज्यादा हैं और बहुत ही मर्मस्पर्शी हैं ।

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  4. उसकी यही खता थी कि वो कन्या थी| मर्मस्पर्शी कविता......

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  5. हो तुम कुसूरवार
    सब कहेंगे मगर
    अरे ये तो बात दो
    उसकी खता क्या थी?

    बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

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  6. उसकी कोई खता नही थी। हमने अपनी खता की सजा उसे दी है। मर्मस्पर्शी रचना। बेहद ही सुंदर।

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  7. सुंदर मार्मिक भाव लिए ..... प्रभावी रचना

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  8. बढ़िया संदेश !

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  9. सभी से सवाल पूछती रचना...
    दिल को छूने वाली...

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  10. बहुत सार्थक प्रस्तुति .yah aaj bahut jaroori hai ki kanya bhrun-hatya ko roka jaye .

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  11. बहुत ही मर्मस्पर्शी हैं ।

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  12. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति....!!

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