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05 November 2011

मौसम और मन .....

कभी धूप
कभी छाँव
कभी गर्मी
कभी ठंड
कभी बरसात
कभी बसंत
बदलता है मौसम
पल पल रंग।

मन भी तो ऐसा ही है
बिलकुल मौसम जैसा
पल पल बदलता हुआ
कभी अनुराग रखता है
प्रेम मे पिघलता है
और कभी
जलता है
द्वेष की गर्मी मे।

ठंड मे ठिठुरता है
किटकिटाता है
क्या हो रहा है-
सही या गलत
समझ नहीं पाता है
जम सा जाता है मन
पानी के ऊपर तैरती
बरफ की सिल्ली की तरह ।

मन!
जब बरसता है
बेहिसाब बरसता ही
चला जाता है
बे परवाह हो कर
अपनी सोच मे
अपने विचारों मे
खुद तो भीगता ही है
सबको भिगोता भी है
जैसे पहले से ही
निश्चय कर के निकला हो
बिना छाते के घर से बाहर ।

बसंत जैसा मन !
हर पल खुशनुमा सा
एक अलग ही एहसास लिये
कुछ कहता है
अपने मन की बातें करता है
मंद हवा मे झूमता है
इठलाता है
खेतों मे मुसकुराते
सरसों के फूलों मे
जैसे देख रहा हो
अपना अक्स।

मौसम और मन
कितनी समानता है
एकरूपता है
भूकंप के जैसी
सुनामियों के जैसी
ज्वालामुखियों के जैसी
और कभी
बिलकुल शांत
आराम की मुद्रा मे
लेटी हुई धरती के जैसी

~यशवन्त माथुर©

40 comments:

  1. सुंदर भाव, अच्छी रचना

    अपने मन की बातें करता है
    मंद हवा मे झूमता है
    इठलाता है
    खेतों मे मुसकुराते
    सरसों के फूलों मे
    जैसे देख रहा हो
    अपना अक्स।

    ReplyDelete
  2. मौसम और मन
    कितनी समानता है
    एकरूपता है
    भूकंप के जैसी
    सुनामियों के जैसी
    ज्वालामुखियों के जैसी
    और कभी
    बिलकुल शांत
    आराम की मुद्रा मे
    लेटी हुई धरती के जैसी।

    अन्तर्मन का जानदार सच !

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  3. बहुत ही सुन्दर भाव संयोजन ।

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  4. इस अद्भुत कविता के लिए बधाई स्वीकारें...मौसम और मन का कमाल विश्लेषण किया है...वाह.

    नीरज

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  5. Bahut sundar jodi milayi hai Mann aur Mausam ki

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  6. मन ... बदलने का स्वांग रचता है, जब अकेला होता है तो अपने सच को आंसुओं से नहलाता है

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  7. सच है मन मौसम की तरह ही रंग बदलता है........बहुत सुन्दर पोस्ट|

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  8. मौसम जैसा मन ... बहुत खूबसूरत रचना ..

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  9. बहुत सुंदर ! मौसम और मन दोनों एक जैसे हैं... दोनों पर अपना वश नहीं, लेकिन विपरीत मौसम की मार से बचने के लिये तो मानव ने घर बना लिया है पर मन के मौसम से बचने के लिये....

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  10. मन भी तो ऐसा ही है
    बिलकुल मौसम जैसा
    पल पल बदलता हुआ
    कभी अनुराग रखता है
    प्रेम मे पिघलता है
    और कभी
    जलता है
    द्वेष की गर्मी मे।
    बहुत सुन्दर
    आप मुझसे जुड़े इस उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद ...

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  11. अद्भुत विश्लेषण, मन तो मन है कभी रूठे मौषम की तरह, कभी बाढ़ की विभीषिका की तरह. मिजाज़ पकड़ने की बधाई जी

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  12. वाह ..बहुत ही बढि़या ।

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  13. बहुत सुन्दर रचना.. आभार...

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  14. वाह !!! मन के भावों को मौसम से जोड़कर आपने बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोते हुए उकेरा है। बहुत ही बढ़िया और खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आभार....

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  15. मन भी तो ऐसा ही है
    बिलकुल मौसम जैसा
    पल पल बदलता हुआ
    कभी अनुराग रखता है
    प्रेम मे पिघलता है
    और कभी
    जलता है
    द्वेष की गर्मी मे

    मौसम और मन का बेहतरीन तुलनात्मक अभिवयक्ति.... !लेकिन एक बात लिखूं , मौसम पर तो हमारा अंकुश नहीं चल सकता और मन पर.... ??

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  16. सच, मन और मौसम में बहुत समानता है

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  17. मौसम और मन क्या बात है दोनो ही शहंशाह है ...... शुभकामनायें !

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  18. खेतों मे मुसकुराते
    सरसों के फूलों मे
    जैसे देख रहा हो
    अपना अक्स।
    खूबसूरत रचना |

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  19. मन भी मौसम की तरह कई रंग समाये है..... सुंदर रचना

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  20. कई बार एक मौसम नहीं बदलता ..!बहुत सुंदर रचना , आभार ..

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  21. आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  22. आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  23. मौसम और मन
    कितनी समानता है

    सचमुच..
    सुन्दर चिंतन.... बढ़िया रचना...
    सादर बधाई...

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  24. सुंदर कविता। बधाई यशवंत भाई।

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  25. सचमुच मन और मौसम में बहुत समानता है...सुन्दर रचना...

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  26. बहुत अच्छे भावों को सजोया है आपने,सुन्दर रचना !

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  27. मन और मौसम का मिजाज़ बखूबी पकड़ा है..बहुत सुन्दर लिखा है.बधाई.

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  28. मन का मौसम से प्रभावित होना स्वाभाविक है. सुंदर रचना.

    बधाई.

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  29. मन भी तो ऐसा ही है
    बिलकुल मौसम जैसा
    सुंदर!

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  30. सुंदर तुलना,मन और मौसम की.

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  31. मौसम और मन
    कितनी समानता है
    एकरूपता है
    भूकंप के जैसी
    सुनामियों के जैसी
    ज्वालामुखियों के जैसी
    और कभी
    बिलकुल शांत
    आराम की मुद्रा मे
    लेटी हुई धरती के जैसी।

    ...बहुत सटीक सत्य...दोनों पर ही आदमी का कोई वश नहीं होता..बहुत सुंदर

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  32. आज एक और काव्य-प्रतिभा से मुलाकात हुई ,अच्छा लगा. शुभकामनाएं..

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  33. sahi kha yashwat ..mann aur mausam ek se hain..

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  34. यशवंतजी ,मौसम और मन की सुंदर समीक्षा करती रचना..अच्छी लगी
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है ...

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  35. बहुत बढ़िया लिखा है.

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  36. मौसम इंसान के मन के साथ सजीव हो उठता है और बदल जाता इंसानी मन की तरह ... सुन्दर रचना ...

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  37. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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