निकल जाए जो साँस, तो मुर्दा बदन देख कर
ज़ख्मी रूह भी आएगी,जनाज़े का मंज़र देखने।
मैं इंतज़ार में हूँ,कफन कोई ला दे मुझको
चल दूंगा फिर खुद ही,खुद को दफन करने।
अब और नहीं चलना,इस राह ए जिंदगी पर
जन्नत निकल पड़ी है,गबन दोज़ख का करने।
~यशवन्त यश©
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06 September 2013
जन्नत निकल पड़ी है,गबन दोज़ख का करने
प्रकाशन समय
7:51:00 pm
प्रस्तुतकर्ता
यशवन्त माथुर (Yashwant Raj Bali Mathur)
श्रेणी
पंक्तियाँ,
बस यूँ ही



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Date of capture: 20/05/2021, Lucknow (UP) Camera: Canon Sx740hs TO BE USE WITH PHOTO CREDIT . COPYRIGHT-YASHWANT MATHUR©
बढ़िया
ReplyDeleteमैं इंतज़ार में हूँ,कफन कोई ला दे मुझको
ReplyDeleteचल दूंगा फिर खुद ही,खुद को दफन करने।
bahut sundar bhavpoorn abhivyakti .
शुभप्रभात बेटे
ReplyDeleteये क्या है
क्यूँ है
नमस्ते आंटी!
Deleteये कुछ पंक्तियाँ हैं।
इसलिये हैं क्योंकि मेरे मन ने इन्हें लिखने को बोला।
सादर
अब और नहीं चलना,इस राह ए जिंदगी पर
ReplyDelete***
कई बार ऐसा मेरे मन में भी आता है:(
पर ज़िन्दगी है न, जी जानी चाहिए हर हाल में:)
Well written!
पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं..पर भाव तुम्हारे लायक नही.
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteकुछ अधिक कडवी हैं पंक्तियाँ ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteज़माने के सितम से हर के रूह जख्मी हो गए हैं.... फिर भी हमें जीना पड़ता है... बहुत अच्छा लिखा...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव... बधाई...
ReplyDeleteसुंदर भाव लिये रचना..
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