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17 July 2014

हो सके तो हमें माफ कर देना

Photo:-Palestine Solidarity Campaign UK
दूर देश से आती
तुम्हारे झुलसे हुए
नाज़ुक जिस्मों की
तस्वीरें देखकर
कौन ऐसा होगा
जो रो न देता होगा ...
मगर
सुनाई नहीं देतीं
दर्द से भरी
तुम्हारी चीखें
तुम्हारी कराहें
इस क्रूर दुनिया के
सफेदपोश लोगों को  ....
दिखाई नहीं देतीं
अनगिनत चोटें
ठंडे पड़ चुके
खामोश हो चुके
तुम्हारे बदन पर ...
इस खेलने
मस्ती करने की उम्र में
उधर
तुम्हारे ऊपर
आसमान से गिर रहे हैं बम
और इधर
अपने अंधेरे स्वार्थों के
शिखर पर
बैठे हुए हम
चुप्पी के साथ 
सिर्फ व्यक्त ही कर सकते हैं
अपनी संवेदना .....
गाज़ा के प्यारे बच्चों !
हो सके तो
हमें माफ कर देना।

~यशवन्त यश©

8 comments:

  1. हाँ माफी ही माँगी जा सकती है बस ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (18-07-2014) को "सावन आया धूल उड़ाता" (चर्चा मंच-1678) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह यश बेहद संवेदनशील रचना लिखी है शुभकामनायें

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  4. marmik par sach hai ye......sarthak prastuti yashwant bhai

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  5. har manav agar itna sanvedansheel ho kar sochega to krurata kam ho sakegi behad marmik

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  6. आसन्नल संकटों की भयावहता से हमें परिचित कराया है आपकी वैचारिक की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है ।

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  7. Urf bahut hi dard shamil kr deta hai Mann me gosho me gazaa ki ye sthiti kroorata hai... Bahut umdaa lekh

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