Photo:-Palestine Solidarity Campaign UK |
तुम्हारे झुलसे हुए
नाज़ुक जिस्मों की
तस्वीरें देखकर
कौन ऐसा होगा
जो रो न देता होगा ...
मगर
सुनाई नहीं देतीं
दर्द से भरी
तुम्हारी चीखें
तुम्हारी कराहें
इस क्रूर दुनिया के
सफेदपोश लोगों को ....
दिखाई नहीं देतीं
अनगिनत चोटें
ठंडे पड़ चुके
खामोश हो चुके
तुम्हारे बदन पर ...
इस खेलने
मस्ती करने की उम्र में
उधर
तुम्हारे ऊपर
आसमान से गिर रहे हैं बम
और इधर
अपने अंधेरे स्वार्थों के
शिखर पर
बैठे हुए हम
चुप्पी के साथ
चुप्पी के साथ
सिर्फ व्यक्त ही कर सकते हैं
अपनी संवेदना .....
गाज़ा के प्यारे बच्चों !
हो सके तो
हमें माफ कर देना।
~यशवन्त यश©
मार्मिक.
ReplyDeleteहाँ माफी ही माँगी जा सकती है बस ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (18-07-2014) को "सावन आया धूल उड़ाता" (चर्चा मंच-1678) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह यश बेहद संवेदनशील रचना लिखी है शुभकामनायें
ReplyDeletemarmik par sach hai ye......sarthak prastuti yashwant bhai
ReplyDeletehar manav agar itna sanvedansheel ho kar sochega to krurata kam ho sakegi behad marmik
ReplyDeleteआसन्नल संकटों की भयावहता से हमें परिचित कराया है आपकी वैचारिक की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है ।
ReplyDeleteUrf bahut hi dard shamil kr deta hai Mann me gosho me gazaa ki ye sthiti kroorata hai... Bahut umdaa lekh
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